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मुनि सभाचन्द एवं उनका पपपुराण
वह तो भपति यह वाण्यां हुँदर । कैसे मोर लहै वह भगर ।। विनयदत्त बोले तिण बार । हुं वाण्या इह राजकुमार ||२६०४।। कसे कहूं राज मों जाइ । अउर मोर लेह मन ल्याइ ॥ वह तो मोर फिरणे का नहीं। एह बात हम तुझ सों कही ।।२६०५।।
पैसा कवरण बली है सूर । रावणस्यो सरभर कर पूर ।। लक्ष्मण का क्रोधित होकर निश्चय प्रकट करना
इतनी सुशि लखमण कोपाइ । जो रावण में वल अधिकाय ॥२६०६॥ तो क्यू उन चोरी न ल । वा कुबुद्धि मरण की भई ।। कायर डर नपुसक लोग । चोर अन्याई मार्ने दुख सोफ ।।२९०७॥ क्षत्री डर मरने का करें। निपचय जाय नरक में पडे ॥ अब लो रावरा पा बलवंत । दन मैं जब लग बलवंत ॥२६०८।। केहरि की नब सुण हंकार । निरमद हूँ नासै तिरण वार ।। लखमण कहे इण परि उपदेस । राजसभा में सुण्यो नरेस ।।२६०६।। कुसुमपुर नग्रप्रभा स है। अभुमा त्रिय निरिम सुख लहै ।। प्रात्मसंशि ताक सुत भया । इक दिन वन क्रीड़ा को गया ॥२१॥ प्रथमसेन का दरसन पाय । सेव करी बहु मन बघ काइ । उन तपसी चुरा इक दिया । सर्व गुरणों का परचा किया ।। २६१११॥ राजा की राणी अहि डसी । गारुड गुणी जुड़े मुरण बसी ।। औषध जतन लग नहि काइ । प्रातम शक्ति राजा पंजाइ ।।२६१२।। नुरा घोह लिया पंच नाम । इसी थी ज्याचेती नृप भाम ॥ राणी का विष उतरा सुण्या । राय तणा मन रहस्या परणां ॥२६१३।। प्रात्मशक्ति को दिया बहु साज । बहुत विभव पर माधो राज ।। कुछ लछमी गडी थी कहां । खोदण गया प्रारमसक्ति तिहां ॥२६१४॥ मजगर लेकरि गया पाताल । देखि षोह तिहाँ पस्या मुवास ।। अजगर ने मारी फौंकार । उठे सिला मारचा तिह वार ।।२९१५।। लिया द्रव्य सर्ष उन जाय । हम सीता छोई किण भाय ।। मैसें उन प्रजगर • इण्या । तैसे हम मारेंगे रावणा ॥२६१६।। मंका करि हैं बकचूर । हम प्रागै काहा राषण सूर । सकल भूपती गोसे वयण । सुणों प्रभू राखो चित्त चन ।।२६१७।। वीप पातकी अनंसवीर्य जिनेस । रावण ने पूछे बहु मेस ।। तीन पंजीते सब देस । भाग्या मान सकस नरेस ॥२९१८||