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मुनि सभाचं एवं उनका पद्मपुराण
सकल देस का देख्या राय । वह है कवण तिसका मुंडं नाम || मुनि के वचन यह कुठे पडे । यह संसय परियण सब करें ।।३०१० ।। मार्क विद्याधर था। मेरे पिता सू ́ कहै समझाय ॥
मैं हूं विद्याधर बलवंत । कन्या विवाह यो मोहि तुरंत ।।३०११ ।।
बासी कही जो मारे ताहि । विट सुग्रीव नाम है जाहिं ॥ सो विवाह सी इ नं न्याह । तू अपने घर के उठ जहि ॥ ३०१२ ॥
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बारह दिन हम कूं इत भए । मुनिवर कूं भ्रष्टम दिन यए ।। श्रगारक आग लगाई वन । तुमे उपाया मोटा पुन्य ।। ३०१३ ||
षष्ट वरष जो तपकू करें। तब इह विद्या ताकू फुरं ॥ तुम दरसन विद्या सिध भई । महापुरुष खो तुम गुण भई ||३७१४ ||
गधर्व सेन द्याये भूपती बंदे च देखि मुनि जती ॥ हनुमान सूं पूछा भेव । सकल बात सुशि कोनी सेव ।।३०१५॥ रामचन्द्र हन्या चिट सुग्रीव । किषंदपुर हैं समंद की सींव ॥ उनसों बाद मिलो तुम राइ | हम लंका सीता कनें जाइ ||३०१६।।
राजा सुणि कियो उल्हास । ततक्षण गयो राम के पास ||
रामचंद्र लक्षमरण मूळे मिल्या | गंधर्व सेन बली प्रति भला ।। ३०१७
कम्यां तीनू राम कौं दई । मन की चिता सह मिट गई । यधिक उछाह भयो मनमांहि । सकल दूरि भाजी उरदाह ।। ३०१८ ।।
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मनवांछित कारज भए, तप साधे थी तीन ॥
विद्या की तिहां सिघ भई, पाय वर प्रदीप ||३०१६ || इति श्री पद्मपुराणे गंधर्वसेन लाभ विधान
४६ व विधानक चौपई
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हनुमान का प्रागे जाना
त्रिकुटा बल गिरि ऊंचा थान । ताहि न सके उलंघ विमान || पास रही चाल्यो हनुमान । वा पर कोट देख्यो हनुराय ||३०२०।।
प्रथम मंत्र मंत्री सो कहा । यह गढ कवर। सवारधा तिहां ॥ तब मंत्री बोले सुविचार | सीतां ही तब ए सवार ।। ३०२१ ।। खरदूषण मुक्या सुभ्यां । एक पुरुष सगला दल हूण्यां ॥ जब कहू ये यहां श्राचं बो तो हम दल सव परलई होइ ।। ३०२२॥