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मुनि समाचं एवं उनका पद्मपुराण
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जनदत्त मुरिण दोडियो तुरंत । रत्नकवल गठडी में बहुमंत ।। माता सूपूछया सब भेद । मनतें कुमति भई सब छेद ।।२८७७।। धनदत्त सेती भिलियो कुमार | भयो भानंद सकल परवार ।।
इगा विध तुम कौं सीता मिलं । सूर मुभट बुलाइयो भले ।।२८७८।। चारों ओर सीता को खोज
दोप प्रवाई में सब ठौर । बेगां जाइ करो तुम दौर ।। जहां सीतां देखो तुम जाइ । तिहां की खबर बेगा धो ग्राम ।।२८७६।। देम देस को नरपति गए । सुग्रीव बहुरि चरण को नए ।। प्रमुजी मोक्पाग्या होइ । मैं भी थानक सोषु कोइ ॥२८८०|| बैठि विमाण चल्यो सुग्रीव । काब्रु पर्वत की प्रायो सीन !! रतनजटी विद्याधर तिहां । फरहर्ना देख्या मेजा विहां ॥२८१ इह किसकी शुजा फरहराइ । उतर भुमि तिहां देखें प्राइ ।
रतनजदी हरप्या तसु देखि । इह कोई है दुरजन भेष २८८२।। रतनजटी और सुग्रीक की भेंट
सुग्रीन भूप पूछ रतनजटी । ते कहि रावण सीता हरी॥ मैं बहु तेरा किया उपाय । ता ते कोई न लागी डाव ।।२८५३।। गम का नाम जपं श्री सिया । दुखित बहुत जनक की धिया ।।
सुनि सुग्रीव रतनजटी ल्याइया । बंठि विमारण रराम दिग ग्राश्या ।।२८८४।। रतमजटी द्वारा संका का परिचय
रतनजटी कीयो नमस्कार । बान मकल भापी गिरधार ।। . राक्षसपुर इस सायर मांहि । सातस जोजन चौडाइ जाहि ।।२८ ५।। एक बीस जोजन की लंबाई । त्रिकुटाचल नव जोजन चौडाद ।। पचास जीजन की उंचाइ । वा सम गढ नाही किण ठ ।।२८८६।। तीस जोजन के लंका फेर। रावण कुभकरण ज्युमेर !! भभीषण से दुरजन सब हरें । इन्द्रजीत मेघनाद बल परें ।।२८५७।। पंद्रहस क्षोहणी दल संग । इंद्रादिक कियो मान मग ॥ यस नगर बस ता पास । मुर्वा सुमेरपुर महिलादपुर बास ॥२८॥ जोधपुर हरिपुर सागरपुरी । मधासुर तिहा नगरी ।। रामण सम भूपति कोई नाहि । ऐसे वपन सुण नरनाह ॥२८८६।।