________________
२७२
पपपुराण
राम लानर किराजपुर जाई : सुप्रोम में आत कही समझाइ ।। सुग्रीव प्राय चरण कू' नया । प्रमुजी मोह रूपर कीजे दया ।।२८६३ः। प्रस सीसा सुधि ल्याऊ नोहि । तब मैं करूं तुमारी सेत्र ।। रामचंद्र मुग्रीव सू काहैं । इह मंमय मेरे मन रहै ॥२८६४।। मोह फंद में बिसर मयो सूत्र । प्रन में प्रसी थापु बुधि ।। द्वारा माता प्राप्ति की कथा
ज्यौं अक्षदत्त नै माता लही । तारा इस मुनिवर ने कही ।।२८६५।। जक्षदस किम पाई माइ । ते विरतांत कहो समझाई ।। अंजन नगर भूप तिहां यश । गजलदे नारि उनम पक्ष ।।२८६६।. यशदत्त वेस्मा के ग्रेह । देव कौतिग धरै सनेह ।। दमंत्रवती ताकै निज बसे । जक्षदत्त-तासूनित हंग ॥२८६७।। तारायण मुनिवर यह देख । जक्षदत्त समझाया प्रेष ।। इह तो तुझ माता परत । कहा प्रग्यांन मया दत्तदक्ष २०६८।। कुवर भणं कैसे इह मात । व्योरा सुभाषो ते बात ।। मुनिवर कहैं मृतकक्सी देस । कनक महाबन सुण उपदेम ।।२६६॥ धरणी नाम तास की नारि । घनदत्त पुष लियो अवतार ।। दमंत्रवती व्याही प्रस्तरी । रूप लक्षण सों सोम खरी ।।२८७०।। क्नदत्त बाल्यो लाद जिहाज । दमंत्रचती ने सौंपी लाज ॥ रत्नकयल दे तिसको गया । दमश्यती सुग्रम स्थित भया ।।२८७१।। सासू सुसर दई निकाल । उत्पलका संग दीनी नारि ।। रोवत परली साह की बहु । कोप न मैठन देव कहूं ॥२८७२।। विणजार संगि दुख सौं जाई । बनफल कबहु भोजन खाइ । उत्पल दासी भयंगम उसी । देह छोडि जम मंदिर पसी ।।२८७३।। रही अकेली दुसित घणी । असुभ कर्म ते प्रेसी वणी ।। भयो पुत्र प्रति चिंता करी । में तो सुस अनम्यौ इस घड़ी ।।२८७४।। जे रातो पालू किह भांति । रनकवल में लपेटी राति ।। जमराय को दीया पूत । जलदत्त नाम संयुत्त ।।२८७५१॥ मंत्रवती को दीया दाम । वह तो रहे वेस्यां निज ठाम ।। जे तेरै मन प्राव नहीं । रत्नकवल गांठ कीडी में सही ॥२८७६।।