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पद्मपुराण
भइसी पईज कहा तुम करो । सीता तणो सोग परिहो।। भवर विधाहो भुगतो भोग । कहा करो तुम इतना सोग ।।२८६७|| राम कहँ सीता विन प्रौर । कस् नारि प्राणन को ठौर ।।
रायणक भेजू जमलोक । रहै सदा लंका में सोक ।।२८६१।। जांबुनव मंत्री का कचन
जांबुनद मंत्री कहै चयन । अपने मन राखो चन ।। सीता किसर्प मारणी जाइ । रवि समान तपै रावण राय ।।२८६२।। जैसे बंदर मोर के काज । व्याकुल भयो छोडि सब राज ।।
मैसे तुम भरमहो राम I जिह भरम्या का सर न काम ||२८६३।। बंबर मोर की कथा
पूछ राम बंदर की बात । उसका मोर गया किंह भांति ।। बना नंदी चैनपुर नगर । सर्व रुचि रहे नांभी सगर ।।२८६४|| गुण पूरणा बाकी अस्तरी । विनमदत्त जनम्या सुभ घडी ।। ग्रह लछमी परणाई नारि । जोवन बैस सुख भोग मझार ॥२८६५।। विसालभूत द्विज सों बहु प्रीत । ग्रहलछमी बीमारी विपीन | द्विन सौ कही विनयदस कुमार । हम तुम सुख मुगत संसाः ।।२८६६।। बाहाए मन में पाप विचार । विनयदत्त को लेगमा प्ररण मझार । बोधि नेज सौं ऊंची डारि । फिर आयो विनयदत्त के द्वार ॥२८६७।। ग्रह लछमी जणाई सार । मैं मारया तेरा भरतार || दोन्यू खुसी हुअा मन बीच । विसालभूत कीया कर्म नीच ॥२८६८॥ दया न समझ्या मारपो जजमान । जिसप लेता नित उठि दान ।। छुदर सेठ का वन में गया । वाहि तर तलि ठाढा भया ।।२८१६।। ऊंचे कू देख्या विनयदत्त । चच्या डाल परि दया निमित्त । खोलि दिया सर्ब रुचि का पत्त । वा पहुंचाया घर जुत्त ।।२६०० ।। ब्राह्मण सुत भाज्या तजि देस । सेट परे नपाई बट्ट भेस ।। नउतन जनम पुत्र का भया । दर के हाथ सुमोर उडि गया ।।२६०१॥ राजकुमर में पकरयो मोर । छुपर कर पुर में प्रति सोर ।। विनयरा प्रतै हुंदर इम फहै । मो सेती तुझ प्राण ए रहै ।।२९० २१५ मेरा मोर कुवर ने ग्रह्मा । अब वह तेरा मान हा॥ मेरा मोर छुद्धाय दे मो हाय ! मैं तो भषा किया तुम साथ ।।२६०३॥