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२७.
पपपुरात
सोचं नृप किकर कूदेखि ! अंगद गया मेर दक्षण विसेष । वाकू लागं कछु इक बार । तो इहै माया इस विचार ॥२८३८।। कै मन कुवर भयो वैराग । दिष्या सेहे मह कुत्याग । के तारा राणी दुख दिया । यह कारण हूं दुश्चिता भया ।।२८३६॥ पहुंच्या किंकर विनती करी । प्रभू चलो उठि या ही घडी ।। एक अचंभा देख्या ग्राज । तुम सूरत कोई पायो राज ।। २८४७11 अंतहपुरी कियो परवेस । राणी तुमसौं किया सुंदेस । राजा अायो नगर मझार । दरवाने रोक्या तिणवार ॥२८४११॥ भटक बचन मुख सेती है । राजा घस्या तिहां यह लह ।। मपणी सूरत देश्या और । दोनुभूप करें तिहां सोर ।।२८४२॥ मंत्री सोग गर ! गट प्रत रार पद दिया । वे दोन्यु नप दिया निकाल । बाढी मन में चिता जाल ।।२८४३३। जब लग समझ पड़े कछु नहीं । तब लग राज तुमारसही ।। विराधित दुजाइ हणमंत । उनै न पाया इनका मंत ॥२८४४।।
ए दोन्यु एक उणिहार । इनका न्याय नही निरधार ॥ राम द्वारा सुप्रीम को राबवेना
रामचंद्र की किपा मई । सुग्रीव भूष को उपमा दई ।।२८४५॥ तुमारे दुसमन को मारी ठौर । अपणो कीम्यो राज बहोरि । जो न सुधारों ठेरा काज ! तो मैं दिष्या लेस्यु प्राजि ॥२८४६।। धिग घिन इरण संसारी गैत । ता कारण ऐसी विपरीत ॥ जसा दुःख तुझं तसा मोहि । हूं अब देस माध यो लोहि ।।२८४७11 तू भी करो हमारा काम । सीतां सुरगानो ठाम ॥ कहै सुग्रीव सात दिन माहि । बाकी मृधि पहुंचाऊं पाहि १२८४८ ।। सात दिवस में जो मोहि काम न करों । तो हूं अगनि माहि जल मई ।। भेज्यो दूत विट सुग्रीव पाम । बहे चढ़ि पाया जुध की प्रास ।। २०४६ ।। दोनु तरफ वारण पुष भया । सुग्रीव गक्ष मारि घर गया । निर्भयवंत ते गया अडोल । ह्यो सुग्रीव त्या फिर बोल ॥२५॥
रामपास इक दूत पठाइ । मेरी मदद करो जो प्राय ।। सुग्रीव की विजय
उन तो मारि किये चकचूर । मो सू जुध भया भरपूर ॥२८५१।।