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मुनि समानंद एवं उनका पद्मपुराण
सुग्रीच राज भ्रष्ट जो कर । लंका परि हथनांला घरं ।। सूर सुभट रा चिटु पोर । सुग्रीव गज छुडायो ठोर ।।२८२६।। विद्याधर इक किवंदपुर गयो । तारा राणी सुपासक्त भयो । मुग्रीन दियो देस ते कादि । सूरज के सुत चिंता बाढि ।।२८२७।।
बहुत सोच दुहं धां वणी, निसनासर यह ध्यान 1॥ रामचंद्र सीता धरणी, दणै कहा प्रब प्राणि ॥२८२८॥ इति श्री पद्मपुराणे माया पुकार विधानक
४१ विधायक
चौपई राम सुग्रीव मिलन
किपंध नगर पूरज रम भूप । ताको पुत्र सुग्रीव स्वरूप ।। मारा राणी ताक पटवणी । नगद पुत्र बन्न सोभा घगी ।।२८२६।। मुग्रीन दंडक घन माहि प्राय । देखी लोथ पड़ी तिरण ठाय ।। बटोही पूछ सुप्यो सब भेद । भनी सोच मन में अखेद ।।२८३७।। मेरे मन इच्छा थी और । खरदूषण झुझ्या इम ठौर ।। अब हूं मना कवरण सू' करू । राबरण की सरणागति परू 11२८३१।। बहुरि विचार कर सुग्रीव । जो मोकू बांध दस ग्रीव ।। रामचंद्र सों जाकर मिलु । तो मैं राज लहूं निरमलू ।।२८३२।। सात क्षोहणी दन्त सुग्रीन के संग । जाके भयो राज में भंग ।। राम लक्षमण पं गयी सुग्रीन । करि डंडोत नवाई ग्रीव ।।२८३३।।
मलिन कप सुग्रीव कू देखि । पूछ रघुपति ताहि विशेष ।। राम के द्वारा सुप्रोष के सम्बन्ध जानकारी पाना
विराधित सूपूछयो विरतांत । सुग्रीव दुखित है सो कहि भांति ।।२८ ३४।। विराधिस वचन कह समझाय 1 किषधपुर नगगे का राव ।। मायारूपी विद्याधर एवा नाय । सुग्रीवरूप अंतहपुर जाय ।।२८३५।। तारा राणी कर विचार । इह तो है प्रवरं प्रणुहार ।। किंकर तब ही लिए बुलाय । कही बैग सुग्रीव पै जाइ ।। २८३६।। वन क्रीडा कू भूपति गयो । मेरे मन एह संसय भयो ।। किकर दोश्या वनह मझार । दुचिता देख्यो भूप तिरण बार ॥२८३७।।