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मुनि सभाधव एवं उनका पमपुराण
चममता का रावण से निवेदन
रावण चन्द्रनखा ने कहैं । तुझ उपाय ए कल लगे । एता सब तुझ भया उपाय । मारघा वरदूषण सा राव ।।२८३०।। गांव देस्यां तू बैठी खाह । अपण तन मन राखो ठांह ।।
अंसी. कहूँ अंतहपुर जाइ । सेज्या पोहे व्याकुल काइ ॥२००१।। मंदोदरी द्वारा श्रवण से पूछना एवं रावण का उत्तर
मंदोदरी पूछ कर आः । दुचिते • • 'ए तुम रेशि ।। रावण कहै सीता की बात । हरि लीयो वाकु इण भांति ।।२८०२।। खरदूषण संबुक कुमार । लक्षमा ने वे मारे सरि ॥ अवलोकिनी विद्या ने पूछ । वन मो बताई सगली मुह्म ।।२८०३।। मैं बाकी सीता को हरी । वाहि विछोहा कत की पडी ।। वाकं राम नाम की जाप । अत्नपाणी बिन महै कलाप ॥२८०४।। बेसी चतुर दूती जो होइ । वाकू जाय समझा कोइ ।। मो सती जो मान रति । तो मेरे जीय की मिट चित ||२८०५।। वा बिन ए जात हैं प्राण । सुध बुध मुजि गई सब स्वारा ॥
मंदोधरी मन करे बिचार । करू उपाव तो बचे भरतार ।।२८०६।। दूसो का सीता को समझाने का असफल प्रयास
हुनी सुघड विचक्षण नारि । था को ततक्षा लहे हकार ।। मीता ने समझाया जाय । अन्नपाणी जो अब ही साय ।।२८०७।। गवरण तीन खंड का धपी । राम लक्ष्मण तपसी मुरगी ।। उनके कारण क्या इतना दुःख । करो भोग भुगतो मब सुख ।।२८०८।। दुती चली ग्रीवारक ठाव । सोभा देखी नंदनवन भाव ।। भले वृक्ष बेल बहु वणी । नामावली न जाये गिरणी ।।२००६।। छन्द्रलोक सम उपयन बन्या । मीना सबद प्रमोफ ताल सुन्या ।। आ मुख राम नाम का झ्यांन । ताक चित्त न प्रार्य प्रान ।।२८१०।। मृती जस रावण का गाय । करै नश्य बाजिन बजाय ॥ सौगन त न देख सिया । प्रति पतिव्रता जनक की धिया ।।२८११।। दुती दूत कर्म सब किये । सीता के का नाही हिए ।। हाव भाव दिखलाये घने । मन नहिं माने सीता तने ॥२८१२।।