SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि समाचं एवं उनका पद्मपुराण २७३ जनदत्त मुरिण दोडियो तुरंत । रत्नकवल गठडी में बहुमंत ।। माता सूपूछया सब भेद । मनतें कुमति भई सब छेद ।।२८७७।। धनदत्त सेती भिलियो कुमार | भयो भानंद सकल परवार ।। इगा विध तुम कौं सीता मिलं । सूर मुभट बुलाइयो भले ।।२८७८।। चारों ओर सीता को खोज दोप प्रवाई में सब ठौर । बेगां जाइ करो तुम दौर ।। जहां सीतां देखो तुम जाइ । तिहां की खबर बेगा धो ग्राम ।।२८७६।। देम देस को नरपति गए । सुग्रीव बहुरि चरण को नए ।। प्रमुजी मोक्पाग्या होइ । मैं भी थानक सोषु कोइ ॥२८८०|| बैठि विमाण चल्यो सुग्रीव । काब्रु पर्वत की प्रायो सीन !! रतनजटी विद्याधर तिहां । फरहर्ना देख्या मेजा विहां ॥२८१ इह किसकी शुजा फरहराइ । उतर भुमि तिहां देखें प्राइ । रतनजदी हरप्या तसु देखि । इह कोई है दुरजन भेष २८८२।। रतनजटी और सुग्रीक की भेंट सुग्रीन भूप पूछ रतनजटी । ते कहि रावण सीता हरी॥ मैं बहु तेरा किया उपाय । ता ते कोई न लागी डाव ।।२८५३।। गम का नाम जपं श्री सिया । दुखित बहुत जनक की धिया ।। सुनि सुग्रीव रतनजटी ल्याइया । बंठि विमारण रराम दिग ग्राश्या ।।२८८४।। रतमजटी द्वारा संका का परिचय रतनजटी कीयो नमस्कार । बान मकल भापी गिरधार ।। . राक्षसपुर इस सायर मांहि । सातस जोजन चौडाइ जाहि ।।२८ ५।। एक बीस जोजन की लंबाई । त्रिकुटाचल नव जोजन चौडाद ।। पचास जीजन की उंचाइ । वा सम गढ नाही किण ठ ।।२८८६।। तीस जोजन के लंका फेर। रावण कुभकरण ज्युमेर !! भभीषण से दुरजन सब हरें । इन्द्रजीत मेघनाद बल परें ।।२८५७।। पंद्रहस क्षोहणी दल संग । इंद्रादिक कियो मान मग ॥ यस नगर बस ता पास । मुर्वा सुमेरपुर महिलादपुर बास ॥२८॥ जोधपुर हरिपुर सागरपुरी । मधासुर तिहा नगरी ।। रामण सम भूपति कोई नाहि । ऐसे वपन सुण नरनाह ॥२८८६।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy