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भुमि सभाचन्य एवं उनका पद्मपुराण
सोता को देखना
सीता की देखी छमि घरणी । ते मुख गोचर जाइ न भरणी ॥
जे सीता के नख की कांति । म्री नहीं मंदोदरी गात १२७२३ ।।
जुध तणी गति गयो भूल । उपजी कुबुधि मरणा अनुकूल ॥
करें सोच सीता किम हरु
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में तो सील महाव्रत धरू ।। २७२४ ।।
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सोचै बरखा वर्ण नहीं बात ||
सोलवत टालों कि भांति अथ लग में नहीं करी अनीत । छोडूं नहीं घरम की रीत ।।२७२५ ।।
अब जो सुसरा कोइ । तो अगलोक प्रथो पर होइ ||
जो मैं छोडू सी नारि । तो बिरहानन सहूं पार ।।२७२६ ।।
सी वि या ले जाउं । कोई न समझैं मेरा नांव ॥
करणगुप्ति विद्या का ध्यान करना
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करणगुपति विद्या संभारि । विद्या बोली बात विचारि ।।२७२७|| रामचंद्र सीता के पास । लक्षमण जुध करें व्रन नास || रूसी हरि कड़ी ने गणों नहीं १२७२८॥ संख नाद सबद मैं करू । तव तुम आपण चित मैं घ करके नाद तब ऊपरि भाइ | लक्षमण एम गये समझाइ ॥ २७२६ ।। जं तुम संखनाद करो भरपूर । रामचंद्र उठि जावें सूर ।।
तब तुम तुम सीता हर ले जाव! इस प्रकार तुम करो उपाव || २७३० ॥ रायण द्वारा शंखनाद करमा
arsat वारण भयो अंधकार | सिंघनाद पूरघो विचार ॥
राम का लक्षमण के पास जाना
नाद करत रघुपति सांभल्यो । रामचंद्र लक्षमण ढिंग चल्यो || २७३१ ।। रावण द्वारा सीता हरण
खोटा हुवा राम ने सौंग । सीता ले रोवण करें गौण ॥
पुहुप विभाग से बंटा चल्यो । निकले मनि पाप विचार न करचो || २७३२ ।। सीता का बिलाप
सीता राम नाम उर जपं । लौंचं केस देह प्रति ॥
रे पापी कह तू है कोण मोकौं लेना चाहे जिम पौन || २७३३ ।। जटायु द्वारा आक्रमण
रोवें सीता पीर्ट निज देह । जटा पंषी प्राकर्म करे एह ।।
मारे चोंच रावण के सीस नष सौंध करें बहु रोस ।।२७३४ ||