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पपुराण
रावरण के रास दूत भेजना
इतनी सुणि भेजा विहां दूत । रावण पासि जाय पहुंत ।। मोलह सहल मृकटबंशा ज़हे । हाथ लोरि गम पागे पडे ।। २७१०॥ दस सिर बीस भुजा बलवंत ! चन्द्रहास खडग सोमंत ।।
असक्त बारण गदा तसु पाम । इन्द्र समान विभव बल तास ।।२७११॥ खरदूषण का दंडक धन पहुंचना
खरदूषण बेटा के मोह | बहुरि उठा नारी का छोह ॥ बड़े झुझारू बड़े विमाण । दंडक वन ते पहुंचे पारण ।।२७१२।। सुण्यां देव नंदीश्वर ज्याइ । के कोई दुरजन चढ भाव ।। के कोई गरुड चढ आकास । रामचंद्र इम बोलें भास ।।२७१३।। देखे दस नांगी तलवार । बावतं धनुष संभार ।। सुर जहां सरकात सौं भरा । एक मनुष्य विड़े तल मरथा ।। २७१४।। उन अस्त्री उनके घर जाइ । कहो सकल व्योरी समझाइ ।। ता कारण चढि लाए घणां । अत्र सावधान हुवा ही वण्या 1।२७१५।। सुण्यां सवद सीता निज कान । रामचंद्र सुलिपटी आंन ।। बहुत सोर काहे ने होइ । केसरी सिंघ दहाई कोइ ।।२७१६।।
लक्षमण तव कर वीनती । तुम सीता संग छोडो मती ।। लक्षमण द्वारा युद्ध करना
इनसू जाय करूं मैं युध । में हारू तब लीज्यो सुघ ।।२७१७।। हार जाणौं तब पूर संख । तब कोज्यो तुम मेरा पक्ष ।। सूरजहास सडस कर लिया । वजावत देकार तब किया ।।२७१८।। उततै छुट्टै विद्या वारण | बरछी धरसे गदा मेघ समान ।। गोला गोली पउँ अनंत । इतत झूट बजावत्त ॥२७१६।। लक्षमण के लाग नहीं घाव । विद्याधर झलै तिण ठाव ।। जैसे कमल सरोवर मांहि । असे मुछ मुवि मध्य तिरां हि ।।२७२०॥ हाथी घोडे पर्वत ढेर । पड़ी लोथ सगलो वन घेर ।।।
झूझे सुभट स्वामि के काज | जिन धान लाये की लाज ॥२७२२॥ राबरण का मागमन
रावण सुरिण पायो तिस बार । पहुंच्यो दंशकवन है मंझारि ॥ रामचंद्र सीता बैठारि । रावण दृष्टि सीता पर डारि ।।२७२२।।