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देव पुनीत आभूषणों को प्राप्ति
चन्ना द्वारा बिलाप
चौपई
देत्र पुनीत आभूषण घनं । कैंसर चंदन सोभा वरणे ॥
देवां ने लक्षमण तू दिये । नमसकार चरणन कू क्रिये ।१२६८५। स्वडा लगी बहुबार ||
अनिद्या लक्षमण कुमार वन सीता रामचंद्र सु कहे । लक्षमण कहा अब लग बन रहे || २६६६।। वेगा उठि वाकी सुधि लहू । जटा पंषी तुम मोकू दे 11
तुम
तब ही लक्षमण पहुंचे प्राय । तब पूछें सब रघुपति राइ ।। २६८७ ।। कहां ते लया । लक्षमण तक व्यौरा सब कथा || तब वह करें बहुत श्रानंद 1 खरदूषण घर हवा बंद ||२६८८।।
पद्मपुराण
चन्द्रनखा प्रा थी नित्य । पुत्र सनेह षणु थोचित ॥ नित प्रति देती मांन प्रहार करती सदा पुत्र की सार 11२६८६ । देख्या बडा बांस का कटया 1 पुत्र ने देख्या मन सहु घटभी ||
कुमर खडग किस पर चलाया 1 वन कु काटि कहां उठि गया ।। २६६०॥
चन्द्रनखा को राम लक्षमण से भेंट
अग्रे देखी सुत की लभ । पद्मा मुंड कुंडल की बोय || रोवं पीर्ट करें पुकार ।। २६६१ ।।
देख्या कुंवर खाई पछाड किस दुरजन मेरा मेरा सुत भई चित्त भ्रम विचारें एह । उठो पुत्र कहा करो चरित्र । तेरी बाट जोवें सब मित्र । चन्द्रहास रावस में खडग । तुम चाहो लियो वह मांग || २६६३||
यां । चन्द्रनखा सिर पीट घरणां ।। विद्यासु काटि निज देह ।। २६६२।।
बहुरि संझल करि बोल मात । देखु में किरण कोषा घात ॥
राम लक्षमण कु देखे कही। इन मेरया सुत मारथा सही || २६६४॥ देखि रूप सो भइ आसन । धन्य वह नारि ज्यासों ए रतन ॥ चन्द्रमा रोवे तिण द्वार सीता भाय पूछी ति सार ।। २६६५३० किरा कारण तू रोवे घरपी कहो सांच काहे अखमी ॥ चन्द्रनखा बोलै तव दैन। मेरा जीव कु ́ महा कुचन ।। २६६६ ।। मात पिता मेरे को नाहिं | अब में गही तुमारी छांह ||
जे लक्षमण मोकू वरं व्याहु । तुम जाई समभावो ताहि ॥२६६७||