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________________ २५८ देव पुनीत आभूषणों को प्राप्ति चन्ना द्वारा बिलाप चौपई देत्र पुनीत आभूषण घनं । कैंसर चंदन सोभा वरणे ॥ देवां ने लक्षमण तू दिये । नमसकार चरणन कू क्रिये ।१२६८५। स्वडा लगी बहुबार || अनिद्या लक्षमण कुमार वन सीता रामचंद्र सु कहे । लक्षमण कहा अब लग बन रहे || २६६६।। वेगा उठि वाकी सुधि लहू । जटा पंषी तुम मोकू दे 11 तुम तब ही लक्षमण पहुंचे प्राय । तब पूछें सब रघुपति राइ ।। २६८७ ।। कहां ते लया । लक्षमण तक व्यौरा सब कथा || तब वह करें बहुत श्रानंद 1 खरदूषण घर हवा बंद ||२६८८।। पद्मपुराण चन्द्रनखा प्रा थी नित्य । पुत्र सनेह षणु थोचित ॥ नित प्रति देती मांन प्रहार करती सदा पुत्र की सार 11२६८६ । देख्या बडा बांस का कटया 1 पुत्र ने देख्या मन सहु घटभी || कुमर खडग किस पर चलाया 1 वन कु काटि कहां उठि गया ।। २६६०॥ चन्द्रनखा को राम लक्षमण से भेंट अग्रे देखी सुत की लभ । पद्मा मुंड कुंडल की बोय || रोवं पीर्ट करें पुकार ।। २६६१ ।। देख्या कुंवर खाई पछाड किस दुरजन मेरा मेरा सुत भई चित्त भ्रम विचारें एह । उठो पुत्र कहा करो चरित्र । तेरी बाट जोवें सब मित्र । चन्द्रहास रावस में खडग । तुम चाहो लियो वह मांग || २६६३|| यां । चन्द्रनखा सिर पीट घरणां ।। विद्यासु काटि निज देह ।। २६६२।। बहुरि संझल करि बोल मात । देखु में किरण कोषा घात ॥ राम लक्षमण कु देखे कही। इन मेरया सुत मारथा सही || २६६४॥ देखि रूप सो भइ आसन । धन्य वह नारि ज्यासों ए रतन ॥ चन्द्रमा रोवे तिण द्वार सीता भाय पूछी ति सार ।। २६६५३० किरा कारण तू रोवे घरपी कहो सांच काहे अखमी ॥ चन्द्रनखा बोलै तव दैन। मेरा जीव कु ́ महा कुचन ।। २६६६ ।। मात पिता मेरे को नाहिं | अब में गही तुमारी छांह || जे लक्षमण मोकू वरं व्याहु । तुम जाई समभावो ताहि ॥२६६७||
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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