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मुनि सभाचंद एवं उनकी पद्मपुराण
बा भगनी है चंद्रनषा परदूषण पर राशी राखा ॥ बार्के गर्म पुत्री भए । संक सुंदर निरमए ॥२६७२ ।। सूरजहास पड़ग निमित्त संगुरु की तपस्या
सूरनहास षडग निमित्त संवूक साध्या तब बहु भंन || बारह वर्ष दंडक वन रह्या । साधी विद्या षडग तब लया ।। २६७३।१
दिवस सात औंधे मुख रह्यो । संबूवर षटक न ग्रह्यो ।
ने पड व मो हाथ । तत ले जाऊं अपएँ साथ ।।२६७४ ।।
तस सुगंध वन भयो सुवास | लक्ष्मण गयो षडग के पास ।। बहुत कष्ट श्री पायो । बारह वर्ष सह्यो उपसर्ग ।।२६७५ ।।
आप ही आवं कर्म प्रमान ॥
असे वासू स्यायो ध्यान तब मैं ले जाऊं निज गेछ
।
इरण प्रकारे साधी जन देह ।।२६७६३६॥
लक्षमण द्वारा सुरजहास की प्राप्ति
लक्षमण सूरजहास नै पाइ पुण्यवंत नारायमा शह ॥ ततषिण मूठ वडग की गही । जारणी जोति सूरज की नहीं || २६७७ ।।
२५०७
देख्यो बहोत ऊजले वरण | नगमा चादै परिष्या करण |" यो है कसोख देखू चलाय । या की कैंसी बार ठहराय || २६७८ ॥
वेडो बस की रह्यो तिहा मंत्र कुंवर बैठो ति ठाइ ॥1 लक्षमण करें बेड़ा परि फोट संबूक कुंवर कटघो तिल वोष || २६७६।। उत्तर मुंड धरती पर पडचा । गिरी लोष तिहां लक्षमण खडा || सुरजहास खडग छह भेव करें देवता सगला सेव || २६८०।।
देव सकल बोलें तिए बार ए पुग्यवंत यष्टम प्रवतार ॥ संक कंवर जु कोया तप । विद्या निमित्त किया बहु जप ।। २६६१।।
हा वर्षे कष्ट बहु सहा । बाका हेत मन ही में रह्या ॥ बिन लहरों पार्श्व फिम भांति । बारह वर सदुगात ॥२६८२ ॥
वोहा
बिना पुन्य पावें नहीं, कष्ट सड़ै दिन राति ॥
हीन पुन्य परभव किया, सुभ फल केम नहंत १२६८३ ||
पुन्य जिहां हिां फिर इतना लहै सुभाय ||
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विद्या विभव सरीर सुख, सो मिले अगाऊ याय ।। २६६४ ।।