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________________ मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण नहीं लक्षमण ने इच्छा करी | मान मंड भई विद्याधरी || afs विमास लंका को गई। रामलक्षण मन ऐसी भई ।। २६६८।। जो इच्छं थी चन्द्रनखा, लक्षमण घरी न चित्त ॥ कुमति विचार प्रति घणी, कवण नहे त्रिय हित ।। २६६६ ।। इति श्री पद्मपुराणे संबध विधानक ३८ वां विधानक धौ चंद्रनखा का खरदूषण के पास जाना चंद्रा पहुंची निज भूमि । कपडा फाडि मचाई धूम || खोस्या केस लगाई बेह | नखत सब दीलरी देह || २७०० || रवि खरदूषण में गई । सोगवंत तिहां बोलत भई ॥ पूछे पति सांची कहो बात तो कु कि कही अवदात ॥२७०१ ॥ जिन वरांक तेरा किया सूल। वाका मरणां श्राया मूल ॥ जे यह छिप चाइ पाताल | माह घेर ताकू ततकाल ।।२७०२।। चंद्रनखा कहे दंडकारण । तिहां संबुक गया तपकरण || सूरजहास खडर तिहां लह्या । रहें भूमिगोचरी तिहां ॥२७०३३ २५६ मेरा पुत्र उनु मारिया 1 मोसूं घणी करी है प्राणीया ॥ मैं तो घी करी पुकार । कोई सहाय भयो न तिए बार || २७०४|| [ अबला वह पुरुष सरीर कैसे उनसों हुवे धीर ॥ I सब राखन बहुतेरा करघा । एक बटोही विहां दिठ परचा ||२७०५ | उन मोकू तब वह खुदाय मेरा सील रहर पूरा भाइ ॥ लवर का कुचित होना वरण कोच्या सुण बात । पढ हजार भूपति संघात 11 २७०६ ।। 'सह मंगल लसु डोर । हम गय पायक रथ बहु और || मंत्री मूंछे त मंत्र मंत्री मंत्र को तिरए मंत्र | १२७०७ ॥ बारह वरष कंवर तप किया । लक्षमा श्रावत ही पग लिया || शिवा करें देवता धसे । वासी जुध किया किम वहाँ ॥ २७७८ ॥ जी तुम शुभ्र करल की बात भेजो द्रुत दशानन पास एकठा होय सैन्यां बहु खेय । तब तुम वास करे ||२७०६।। जुष
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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