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मुनि सभाचंद एवं उनका यमपुराण
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तुम काहे कुलीया जाग । छांडे सकल राज के भोग । ओले मुनिवर सुरगौं विचार । गजभोग तिहां थिर न संसार ॥२५१६॥ सुभ अरु असुभ करम परभाव । भ्रमैं जीव पाये नहीं पार ॥ सुपना का सा है सब सुन्न । बहुर लहैं नरक का दुख ।२५१७॥ इल ऊबर निगोदरी वास । जनम भरणा नहीं टूटी पास ।। दिष्या ने पावै सिव पास । निरभ लाभ भोग विलास ॥२५१८॥ दर सन ग्यान बलवीर्ज अनंत । सासन सुग्ब लहै बहु मंत ।।
विजय परवत सुरिण दिव्या लई । मज विभूत पुत्र को दई ।।२५१६।। उदित मुक्ति द्वारा वैराग्य सेना
उदित भूदित उपज्यो वैराग । भये दिगंबर घर सब त्याग ।। सम्मेद सिखर की मनसा वरी । गुरु आग्या लीनी तिहं घरी ।।२५.२०।। वन मे गाए भील की पुरी । मग नहीं लहै तिहां स्थिति नरी ।। साष जोग धरम के काज । ग्यान अकुस में मन अज राज ।।२५२१।।
पंचइन्द्री की रोके चाल । मोह करम की तोडे माल ।। म्लेच्छों द्वारा उपद्रव
मलेकछ प्राय तब कीनी बुरी । साध हतया की इच्छा करी ।।२५२२।। उदित कहै मुदित सौं बात । म्लेच्छ पा है घालण घात ॥ हमकू मारयां चाहँ बाइ । तुम राखो दिल मन वच काय ।।२५२३।। अपमुवित्त राखज्यो ठौर । टूटे जनम मरण की डोर ।। उन मत्य उपसर्ग निमित्त । पापी पाप विचार यो चित्त ।। २५२४॥ पहुंच्या तिहां भील का राघ । दोन्यु मुनिवर लिये छुड़ाय ।। तिन म्लेच्छा ने मारपा बांध । नोन क्यू दुःख दिया साथ ।।२५२५॥ पुछ रःम राय की कथा । बाके भव भाषो सरवथा ।। भरत नगर तिहां दोइ किसाण । सुरपक करपल्लव जानि ।।२५२६।। सुकतवाल कहारिया घोर । तिण किसारण छुष्ठाया तिण छोर ॥ उन बालक जब बुधि सभारि । तप करि उपज्यो राजकुमार ॥२५२७।। सब मलेबु का हुवा राय । करै राज सोमा अधिकाय ।। सुरपक करपल्लव धरम जाणि । तप कर उदित भए यहां पान ॥२५२८।। पूरव जनम दिया प्रभय शन | ता सनबध छुड़ाये इस धान ।। म्लेच्छां को दीनी प्रति मार । मरि करि पहुंच्या नरक मझार ||२५२६ ।।