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मुनि सभाव एवं उमका पयपुराण
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वह तो समझगा इस भांति । तोय्यु हम समझावं वात ॥ प्रकर महाजन सुधा सिरी । वाक साथ तीन प्रतर तिरी ॥२६२३।। प्रावैगा गंगा जल भरण । तीन दिन पाछै उसका मरण ।। पावैगी नूडा अवतार । बीजे भव महिषी अवधार ॥२६२४।। उहाँ त भी मरि विलास के ग्रेह । जा कंवर ग्राम सुतो हुइ एह ।। जती सुकेत भ्राता पं गया । दोग्पांसू तिहां मेला भया ।।२६२५।। वाही समै रुषराजव पाइ । तमें मुकेत बोल मुनिराय ।। अगनिकेत नं पूछे ग्यांन । कहो कल प्रागम व्याख्यान ॥२६२६।। इस कन्या का क्या होइ लिखत । तो मैं जाणतु महत ।।
अगनिकेत को तुम भरणी । तुमारा ग्यान सही मई गिरगो ॥२६२७।। कन्या का भविष्य
सोहराय नहीजो दिन मा को नहिं टरे ॥ भेड भंस गति ह भी सुता । विसाल देह रूप की लता ॥२६२८।। जब कन्या होइ जोवनवंत । प्रवर विलास मामा सु कहत ।। इह कन्या मोफु तुम देह । भागजी जाणि कही उण लेहु ।।२६२६॥ व्याहण प्राया मामा द्वार । अगनिकेत पायो तिण बार ॥ है संन्यासी प्रवार सुपाया । इह तो सुता सेरी इह छाया ॥२६३०॥ तू कहा ऐसा हुम्रा अग्यांन । बेटी व्याहृन कुजोडी जान ।
अंसी कथा कन्या नै सुरणी । उपजी अवधि भव सुमरणी ।।२६३१॥ कन्या द्वारा वैराम्य के भाव
धिग् धिंग भाई मोहनी करम । असे जीव भ्रमैं है मम ।। इह अचिरज सब लोग्यां सुग्यां । भया वराग सबही मरणा ।।२६३२।। अनंतवीरज मुनिवर लिंग गय।। दिष्या लई करि मन दच कया ।। रामचंद्र सीता में सुरें। अबर तह गृद्ध वीनती भरणं ।।२६३३।। अचल राजा गुपति सुगुपति । अनिकेत लह्या समकिस ।। प्रवर प्रवर मामा विलास । विधरा नाम और कन्यां तास ॥२६३४।। धरम मारग हम मोसुकहों । तुम प्रसादै गति उत्तम लहों ।। रात्रि भोजन हिंस्या मृत्त । प्रइसी रीत वह पंषी धरत ॥२६३५।। मुनिवर गए मारणे यांन । सिष्यावृत्त भविजन मान ।। लक्ष्मण ने हस्ती वस्य कीया । परि ताके पति माइया ।।२६३६।।