________________
२५४
पुष्पवृष्टी देखे तिहां ढेर । जटा पंची देस्या लिए वेर ।। रामचंद्र सू पंछी कथा | प्रभु में कह्या भेद सरक्ष्या ।। २६३७
धन्य साथ जे तारी तरं । बेर बेर सबै अस्तुति करें । सम मिया गया संदेह | दया धरम सू घरघोस । २६३८।। सोरठा
नरदेही नि पाया, दांत सुपात्रां दीजिये ।
सुरंग तां सुख याय, अंत मोष्य पद पावहीं ॥२६६६ ।। इति श्री पद्मपुराणे रामचन्द्र सुपात्र दोन जटापंषी विधानक विधानक
३६
चौपई
राम का आगे गमन
अग्रे चले की दछा करी । करन रंधा नदी बहै ति खरी | नाव बिना किम होजे पार । सा तिरा यां करें विचार ।। १६४० ।।
महर मांहि सत्ते साह एक । ताकी सोभा बणी अनेक ॥
छत्री कलस भुगताल घो। सिंहासरण परिश्यत अनेक चंदवा चंदन अरगजा और बाजा बाजे ताके पास पार उतर देखे बहु देस रंग रंग के गिर भाषांन । उत्तम योर रहे मन सांन ॥
कहि भरं पर्वत तं नीर | कही नंदी निकसी तिहूं तीर || २६४४ ।।
दंडक वन में पहुंचना
धन की शोभा
पक्षपुराण
दंडक वन में पहुंच जाय । बहुत पुष्प फूली बनरा || सोहै वन सुगंध यति बाग | देखत उपजे चित्त उला ।। २६४५ ।। डिल्ल
रतन जोति सूरज सम ।।२४४१ मज्या मोठे अधिक विवेक 11
बहुत जुगति राम्रो ति ठौर ॥२६४२ ।। उसपर चढि चाले वनवास |
वन बेहड़ प्रति परयत बैस ।। २६४३ ।।
वेलि चंबेली जातिक चंपा केवडा |
बने सरोवर कमल नीर निरमल भरर्चा ।।
अमर करें गुजार सुसब्द सुहावणे ।
फुले फूल अनंत कवल कब लग गियो || २६४६ ।।