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मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण
नमस्कार करि पूजे चरण । मुनि दर्शन भव पातिग हणं ।। बयाक्त करि दीयो दान । विधि सेती कीयो सनमान ।।२५६५।। मुनिबर को दीनी मुखसोधि । अपैवान बोले प्रति बोधि ।।
पुहुप रत्न वरषे तब घणे । सुर नर सब जे जे कू भरणे ।। २५६६।। गद्ध की कथा
गृध्र एक बैठा तरु द्वाल । भव सुमरा उपज्यो ततवाल ।। केह वेर लही मानव देह । धरमध्यान सुधरयो न सनेह ।। २५६७।। प्रकारथ खोयो सब जन्म । नटवत भेष करे सब कमै ।। मानुष होय कचह्न पुन्य न कियो । शास्त्र सुरगन को चित न दियो ।।२५६८।। मुनिवर को नहीं दियो प्रहार । घरयो नहीं व्रत संजम भार ।। पंषी भयो नित प्रामिष भष्यो । अब मैं कैसे प्रलेष लिष्यो ॥२५॥ चरणोदक मुनिवर का पिया । अंसा ग्यांन गृद्ध को भया ।। गपीन ते कहा भंयम पर्स । मुनिवर चरणों में चित मिलं ।।२६००।। जदरला सम भी
ब ना कहः न । रामचंद्र पूछ विरतान्त । सुगुरु पनि गृपनि मापे बात ।।२६०१।। जनपद करण नाम तिहां देस । महूत नग्र ग्राम बहु बेस ।। कई गिरिपर कई नलें । कई बसें नदी तट तले ।।२६०।। कई निबस महा उद्यान । कई निकट नगर के थान ।। करण कुडल का इंडक भूप । अस्वकरणी राणी सस्वरूप ।।२६०३।। प्रवस्य मी राजा आसक्त । भई रयण करिवा चाल्यो रित्त ।।
मारग में मुनि ध्यानारूल । सर्प एक मंगायो नृप ढूढ ॥२६०४।। मुनि पर उपसर्ग
कीढी बढी साध की देह । परिवस्य के गयो भूपति मेह ।। मुनिवर तब मांड्यो संन्यास । वाके देह तरणी नहीं आम ।।२६०५॥ विसहर मृतग चुब गरल । असो अंहि घाल्यो मुनि गल || जो कोई जाय उतारं सांप । तब वह वासो कर संताप ।।२६०६।। अन्य देश का भूपति शाई । देख्यो सर्प मुनिवर की काई ।। अस्व ते उत्तरि मुनीसर पठतारि । राजा ये कीया नमस्कार ।।२६०३।। उत्तम वस्त्र में पूछियो सरीर । यावृत्त करि मेटी पीर ॥ गयो मूष उपसर्ग निवार । दंडक फिर प्रायो तिण बार ॥२६०८।।