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पुनि सभानंद एवं उनका पमपुराण
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प्रमन्तवीर्य मुनि के पास बेवों का जाना
इक दिन चतरनिकाया देव । अनंतबीर्य दफन सेव ।। तिहां इन्द्र में पूछी बात । मुनिसुव्रत उपजे जिननाय ।।२५७१।।
उन पीछे कवरण होइ केवली । देमभूषण कुन मूषण कथा चली । दोनों मुनियों के केवलशाम होना
उनक उपज केवलज्ञान । उन प्रभु देव विचारधा ध्यान ।। २५७२।। पूरव भव का जाण्यां भेव । प्राया उपसर्ग कीया गहेव ।। मंकर पर विमला माय । ले संन्यास तजी निज काय ।।२५७३।। पहुंचे सौधर्म स्वर्ग विमारण । उपसर्ग देख पाए इस ठाण ।। महालोचन मकर जीव | प्राया मोह करम की नींव ||२५७४।। हम घातिया की सहू टाल । माया माह का तोंञ्या जाल ।। केवलग्यांन उपन्या इस घडी । सुर नर सह मिलि सेवा करी ॥२५७५।।
वूहा रवि प्रताप जग भ तप, ग्यानी ज्योति अनंत ।।
सुरणत भेद संसय मिटे, सुख पावे बहु मंत ॥२५७६।। इति श्री पपपुराणे समूषण कुलभूषण केवलज्ञान विधान
३५ वां विधानक
चौपई सरप्रभ राणा द्वारा राम का स्वागत
सरप्रभ सस्थल को राई । बंसगिरि सोम बहु भाई ।। बारह सभा सुर्ण तहां घरम । रामलखण को पायो मर्म ॥२५७७।। भूपति सकल वर्णन कू' नए । दरसन पाइ कतारय भए । नारायण बल अष्टम अवतार । सुमरमा हुषे जीव मापार ॥२५७८।। सुप्रभराम गयंद सवार । पंचवर्ण कीने इकसार ।। कियो महोसव पाण्यो गेह । दीपं यह कंचन मय देह ॥२५७६।। फिर छन्त्र सिर कारं चंबर । विछ कुमुम सम मारिंग और ।। बहु पकवान मिठाई पनी । बहत भांति की रसवती वणी ।।२५८०।। भात दाल तरकारी घृत । रस गोरस दौनां भरि पत्तं ॥ रतनसवाई कंचन पाल । चौकी जहत बहु मोती लाल ।।२५८१५॥