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पपपुराव
तीन रत्न पालें धरि भाव । साथै तप या विष इण ठाम ।। मनरध संन्यां कौमुदी नन । सुम राजा जा की बल अग्र ॥२५५७।। रतिवंती राणी सम्यक दिष्ट । ग्यान क्रिया में अधिक श्रेष्ठ ।। राय सुरणीधा ऐसा महह । दरसन कारण चल्या तुरंत ।।२५५८।। असे तपसी करिए सेव । राणी निंदा करं पश्चेव । वाद भयो रासणी अन राव । समझ केम सुभासुभ भाव ।।२५५६।।
साधुदत्त मुनि के उपदेश । राणी मांडपो बाद नरेस ।। नागवता का प्रनरष तपस्वी के पास जाना
नागदत्ता कन्या सु कही । अमरध पासि जाह तु सही ।।२५६०॥ सारे दिन रहियो वन माहि । तपसी पास जाइयो सांझ । जब वह चुके प्रापया ध्यान । वाकुल्याज्यो कणिका थान ।।२५६१।। पुत्री गई जहां अनरध । लाग्या ध्यान पातम के मध्य ।। कन्या की पाई तब वास । अनरध कहै फली मन प्रास ।। २५६२। मैं तो बहु प्रकार तप किया। अपछर यह फन्न पाइया ।। तब कन्या तापस ने हैं । मेरी माता मनोहर रहै ।।२५६३।। तु पूत्री अपनो वर ढोल । मब तुम चली मीहि घर गल ।। तुम चरणन की सेवा करू । तुम साथै तप त प्रादरू ॥२५६४।। तव तापस प्राध्या पास । कन्या बोली बचन प्रकास ।।
अब तुम चलों माता के पास ! मोकू देसी तुरत निकास ।।२५६५।। तपस्वी का कन्या के साए जाना
तपसी चाल्यो कन्या मंग । बिमा माजी जिम व्याघ्र कुरंग ।। तिहां सुमुख राजा जा छिप्या । वेस्या के घर प्राया नपा ।।२५६६।।
वेस्या दई अपणी पुत्तरी । भोग भुगत मानें तिह घडी ।। दुशान्ती होना
राजा तब बांध्या तापसी पनिया सौ पीटयो करि हंसी ।।२५६७।। रारूपो राति पाइगा बीच । मन लाद की मांडी की ।। प्रभात भये बुलायो तुरंत । मुड मुडाय क पाछगां बहुभंत ।।२५६म। गादह चढाइ फिराया देस | अंसा किया तपां का मेम ।। मरि करि मुगती सातो न । ऐस सहै भव भव उपमर्ग ।।२५६६।। अंत भया बांभण का पुत । मंन्यासी हूं तप करै वहुमंत ।। ज्योतिग पटल देवता भए । वा सनमंध हमनै दुख दा ।।२५७०।।