________________
२४४
दो मुनिवर में केवलग्यांन । जय जयकार करें सुर श्रान ॥ पूछें गम हज कर जोर । नोल बंध किम पिछली खोर ।। २४०२ । कारण कवरण उपद्रव किया। वितर किम तुम कू दुख दिया || व्यन्तरों के पूर्व भाथ
पद्मपुराण
बोल मुनिवर पूर्व भव भाव । पानी नगर विजयगिर राव ।। २५०३ ।। पट्टराणी नामै धारणी । भोग भुगति रति मान घरणी ॥ अमृतस्वति राजा का दूत उपयोगा स्त्री उदित पूत ।। २५०४ ।।
मुदित नाम का दूजा पूत । वसुभूत विप्र भित्र बहूत || उपयोगादि पाप को रीत । अमृतस्वरि तें रहें भय भी । २५०५ ।। पर्वतभूत मंत्रीय तुला । श्रमृतस्वर कहीं दिया पठाय ॥
वसुभूति विप्र कू' लीया साथ विप्र षडग लीयों निज हाथ ।। २५०६ ।। श्रमृतस्वरित कति मारि । आप कही उपयोगा नं सार || वे दोनु मन रहसे घर डांव पढे दोन्यु सुत हीं ।। २५०७ ।। वां दोन्यां वीर सुरपी इह बात । इरण भाभरण मारधा तुम तात । श्रत्र तुम कू मारेंगा श्राह । सावषाण रहज्यो इस ठाइ ॥२५०८ ।।
इक दिन सोवें था दोउ भ्रात मारा श्राया द्विज अघरात ॥ उदित ने मारी तरवार | वसुभूत मारया तिरण बार ।। २५०६ ।। विप्रजीव म्लेच्छ अवतार । खोटो ज्यौंन भ्रम्यो संसार ।।
मतिवर्धन मुनि का श्रागमन
मतिरधन मुनिवर मुनी अनधरा श्रारज का ग्यानी गुनी ॥१२५.१० ।। वसंत तिलक वन में तें श्राय । छह रितु फूल फले बन राय ।।
सुका तरवर हुवा हन्धा । जलहर सकल तर सुभरा ।। २५११ ।। माली गया राय के पास कही वीनती सह सब भासि ॥ राजा महु परिवार हकार । हाथी नहि वाल्यो नरपार ।। २५१२ ।। नगर लोक चाल्यो नृप संग । पहरि तने आभरण सुरंग || वन के निकट गय जब गया। गजते उतरि भूमि पर दिया ।। २५१३।। मुनि की तपस्या
मतिबरधन मुनि के संग घने । वे ठाढे ध्यान मांहि प्रापणे ॥ कोई पदमासन तप करें। तीन रतन हिरदे में घरं ।। २५१४।। गजा अस्तुति करि दंडीत | दरसन देखि सुख भया बहुत ॥ नरपति हैं सुण मुनिराम तुमारी है राजा सी काय ।। २५१५।।