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पपपुराण
देख्या रहस रली सू लोग । पावत देख्या करण संजोग || सद्म' पाइ चरण कु नया । जित पक्षमा सीता पद लया ।। २४.७६ ।। क्रियो महोत्सव पुर ले गये । पुन्य प्रसाद वह सुख्न भये ।। अधिक पानंद नगर में भया । जित पदमा चित हरष्या थया ।।२४१०।।
सोरठा पूरब पुन्य पसाय, जिहां तिहां रख्या करै । जीत भई सब ठाइ, रघुबंशीन प्रताप अति ॥ २४८१।। इति श्री पपपुराणे मितपणा विधामक
३४ वां विधामक
चौपई जितपमा को छोड़कर भागे वतना
राजा सौंज व्याह की करें। ए चलणे की इम्छा करें ।। जित पदमा सू लक्ष्मण कहैं । तू अपने मन निरमै रहै ॥२४८२॥ फिर आव तव कास्यों ब्याह । तुम क पत में कहां ले जाहि ॥ जित पदमा के लोयरण झरे । नगर लोक सहुँ विनती करै ।।२४८३।। लक्षमण राम रहे हम देस । पुन्यवंत ए बड़े नरेस || राणी राय करै अरदास । पूरण सकल मनोरथ पास ।।२४८४
प्ररथ गनि वन मारग लिया गम लखरण जनक की घिया । राम लक्षमण का संसयल गांव में पहुंचना
देख्यां गाम नगर रु नयरी । बंसथलपुर बसती खरी । २४८५।। लोग भागते देखे घणे । तीजे दिन इक कारण बने ।। बाजा आदि मजना परवल पर कोई बार पुकार । ताके भय भाजे संसार ।।२४८६।। पुरुष छिप मुहरा मभार । विहां रहेंगे सांझ सार ।। बाजे घण दमामे ढोल । ज्यों वह कान पड रहीं धोना ।। २४८७।। को कोई वह सुणं हवार पुरुष नपुसक होवे शिण बाः ।। कोई सुणि हरि तर्ज पणि । असा दोष अछ तिरण यांन ।। २४८८ । सोना सुरिण बोली तब चैन । इस पर्वत परि होइ कुचन ।। इन लंग्गा संग तुम भी चलो । भय की ठौर रहे नहीं भला ।।२४८६ ।।