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मुनि सभाब एवं उनका पपपुराण
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लक्ष्मण का मितपदमा के पास जाना
लछमण गया नगर के पार । ऊंचे घर जैसा फैलास ।। फटिक समान ऊजले वर्ण . जिन मंदिर देखें दुख हो । ४६६।। लक्षमण पहूंता राज दुवार । पौल्पा प्राय फिरचा पडदार ॥ तुम हो कोण कवण कहां जाव , मो सों बात कहो सत भाव ।।२४६७॥ हम प्राए नप दरश निमित्त । लेखण कारण हुवा चित्त ।। पोल्या कहै कुछ उभा रहो । मैं अब जाय राय ने कहों ।।२४६८।। भूपति प्रत वही समझाय | रूपवंत कोई प्रायो राय ।। तुम दर्शन कू ऊभो द्वार । हुकम हुवै तो ल्याउ हकार ।।२४६६।। राजा पासि लाए बुलाय । लक्षमण राजसभा में जाय ।। पूछे नरपति तुम ही कोण । कि नगरी सौ कीया गोरग ||२४७०|| लक्षमण कहै हम भरत के दास । इह बात सूरणी परकास ।। जिसपदमा पुत्री तुम गेह । तुम हती बहला की देह ।।२४७१।। ज प्रतिया है तुमारी सांच । तो तुम मुझ बरछी मारो पांच ॥ अचरज कर गय मन माहि । असा धीरज यामें काहि ॥२४६२।।
जो मैं 'बालू इस पर घाम । अब बस च बुरा है नाम ।। पमा द्वारा बग्छो के बार करना
लक्षमा कह कहा कर विचार । बेग पांच वरली मोहि मार ।।२८७३।। अगन' प्रजलती एक चनाय । लक्षमण ग्रही बीच मां धाइ ।
दूजी बरछी फैंको बली । लक्षमण ने पकडी मन रली ॥२४७४।। लक्षमण की विजय होना
इण विध चुकी पांच चोट 1 पुन्पर्वत धरम की प्रोट ।। तब राजा लक्षमगा कु नया । जितपदमा दीनी निज धिया ।।२४७५५ लक्षमण कहै पन में मोहि भ्रात । सीताराम जगत विख्यात ।।
उनकी प्राम्या ले करों विवाह । मेग वचन सुरणों नरनाह ।।२४७६।। राम राणी सहित राम के पास आना
राजा राणी जितपदमा पृत्त। मंगलाचार गीत यिध करी ॥ परियण सहित राम पं चले । बाजा बहुत बजाये भले ।।२४७७।। उडी धन प्रालोप्यो भान । सीताराम विचार ग्यान ।। लशमण मुकछु भया विरोध | ऊंचे चढि करि लेई सोधि ।।२४.७८।।