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पपपुराण
पाए प्रजोध्या मुगत राज । मनवांछित हुवा सब काज ।। विजय प्रसर्फदा किया विदा । प्रीत रहै। सुधा सका ।।२४२२॥ पृथ्वीधर कह करो विवाह । राम व हैं हम तो बन जाह ।।
पूरण दिन होसी धनमाहि । तबै ध्याह करणे की चाह ।।२४५३।। बनमाला को छोड़कर भागे बदमा
बनमाला नं लक्षमण कहै । बारह वरस वन मांही हैं ।। तुमने साथ ले कहाँ दें दु ख । फिर प्रावै तब होवै सुख ।।२४५४।। तब वनमाला रोवै घणी । सक्षमण समझावं कामपि ।। हम फिर पावेंगे तुम पास । करो मति मन चित्त उदास ।। २४५५।। होवें समकित बिन सूल । मिथ्यादृष्टी मिथ्या मैं मूल ।। अंशा हम कुजो होवं पाप । जे हम फिर प्रा नहीं प्राप ।।२४५६।।
आधी राति उठे दो भ्रात । सीता ले पाले संघात ।। मुलोचना नगर
सुलोचना नन के वन में पाए । अन्न पाणी प्राण भोजन किये ।। २४५७।। जिनमारग ये निकसे पाय । देखि रूप सब मोहित थाय । ए अपने मन निर्भय पल । देखे देश गांम प्रति भले ॥२४५८।। खेमांजलपुर पाश्रम लिया । रामचंद्र लक्षमण निय सिया ।। देस देस के मानस देष । भांति भांति की बोली भेष ।। २४५६।। रंग रंग के पर्वत धने । नामावली कहां लग गिरणे ॥
एक मनुष्य कहे था बात । सत्रुद्रम की कछु कही न जात ॥२४६० ।। जित पना की प्रतिज्ञा
कनक भाजन की प्रस्त्री। जिस पदमा वाकी पुत्री ।। राबा 4 कीनी इक टेक । मेरे हाथ की बरछी सह एफ ॥२४६१।। बाकु पुत्री देई विवाह । करह मंगलाचार उद्याह ।। पैसा पृथ्वी पर है कोण । मरण मापणां चाहे जोरा ॥२४६२॥ जो कोई निज तज दे प्राण । कुण विवाहै भैसी जाण ।। जीव करघा तजै घरबार । जीव समान नहीं संसार ॥२४६३।। मिह सौंमा तूटं कान । वाको पहरे कोण सयान || मंसी भरणकरी मेंने सुरगी । बाहिर बुला कर पूछी घणी ॥२४६४॥ लछमण राम प्रचंभा किया । देखें इह राजा की धिया ॥ अंसा गुण वामैं है कहा । एता गर्म मनमें है गहा ।।२४६५।।