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पपुराण
भरत ने वालि करो नमस्कार । तो तुम जीव का होइ उबार ।। राजा कहे कहां है भरत । ताकी हम आज्ञा सिर धरत । २४२७।। राय कह गरिएका सुरिण बात । जे तुम चालो मुझ संघात ।। तिहाँ पाप बैठा श्री राम । लछमण सीता सों जिण घाम ।।२४२८ ।।
राजा श्री जिन मंदिर जाम । अष्ट द्रव्य पूज रचाय ।। सौता के या भाव होना
घरम मुनि को करि डंडोत । रामचंद्र पग नम्या बहुत ।।२४२६॥
सीता के मन उपजी दया । लक्षमण स्यों कही कीजिार मया ।। प्रतिवों को प्रभयदान
रामचंद्र लक्षमण कृपावंत । अतिवीरज सों बोले दगण मन ।। २४३०॥1 करौ राज तुम निर जाइ । अयोध्यापति की आज्ञा पाः ।। बहुरि न करों भरत सु बैर । अवर देस दीनां तुझ फेर ।।२४६१।। बोले प्रतिबीरज भूपाल । राज करत जे व्यापा काल ।। मरि करि जीव नरक में पड़े । ऐमे दुःख नीची गति भर ।।२४३२।। छह पंड तणी पाच राज । माया मध त्रिसमा दिरण काज ।।
अब मैं लह्यो धरम को मार्ग । अन्द तक रह्यो माया में लागि ॥२४३३।। प्रतिषीयं द्वारा वैराग्य सेना
तुम प्रसाद अब भयो सचेत । अब हू फळं धरम सू हेत ॥ केसरवत्र सुत में दे राज । प्रापन कियो दिगंबर साज ।। २४३४।। तीन रतन तेरह विष धरम । दशलक्षण व पाल छह कर्म ।। अवधिज्ञान मुनिवर कू भया । जीव जंतु की पाले दया ।।२४३५।। नासा हष्टि प्रातमाध्यांन । घरम कथा का कर बखांण ।। सहै परीस्या वीस प्ररु दोई । देह मात्र परिग्रह होइ ॥२४३६।। द्वादस भ्रष्या मुलाइ चित्त । दया भाव सगलां सी नित्त ।। जैसे पिता पुत्र सों नेह । षट् काया सों पाल नेह ॥२४३७।। दश लष्यण गुण चक संभार | भाव सोलह भावन सार॥ भारत रौद्रम्यान करि दूर । घरम सकल राख भरिपूर ॥२४३८।। भरत सधम सुर्ण इह बात । उस ५ दिव्या पालं किस भांति ।। प्रतिवीर्य मांहि अति क्रोध । उन पाया किसका प्रतिबोध ।।२४३६।।