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मुनि सभासंच एवं उनका पमपुराण
बाज बीण मृदंग पर ताल । मृगलोचनी सोहै सुविसाल । दंत नासिका वणे कपोल । मधुर वचन कोकिला बोल ॥२४१३।। सुधर कलाई सोभै हाथ । बेरणी बरणी मुयंगम नाथ ॥ कूच अति कठिन उदर विचली। स्याम केस की सोभा भली ॥२४१४|| कदनी जंघ चरण अति भले । गज मति चाल हंस की चल । वा रहे सोलह शृंगार । आई पात्र राज के दुवार ।।२४१५।। ठाम काम प्राभूषण वणे । अति वीरज राजा तव सुणे ।।
सभा जोडि बंठो नरपति । गाउँ गुण कोकिला अति ।।२४१६॥ नृत्य के भाव
नाचे पात्र दिखावै भाव । थेई घेई करतां देखें रान ।। कबहु लटि शूट पर पुल । मानौं भौं नाग का चल ।।२४१७॥ ज्यौं घटा मांहि दायित । सरल सरीर नदीजोन ॥ कबहु उछल तो तांन । मार बैंचि नैन सर बारण ।।२४१८।। सभा मोहि ताकरि पायो दांन । वस्त्र कनक लीधा मासमांन । नए गीत गावं अपछरा । देखण कू सुरपति मन टल्या ॥२४१६।। भरत शत्रु जस गुण गाये । प्रतिवीरज को समझाये ।। तेरा मंत्री बुधि हीण । ताकी मति दीनी है षीण ।।२४२०।। भरत शत्रुघन रजपूत । महाबली च्यार अवधूत ।। जे तुम चाहो अपना त्राण । भरत भूप की मानू प्राण ॥२४२१ । वह सूरज सम तुम हो चंद । रवि अग्रे कला प्रमंद ।। पैसी सुणि कोप्या मन राम । उठी सगली सभा रिसाइ ।।२४२२।। राजा कादि खडग लियो हाथ । गरिएका परि तक मारयो मांथ ।।
टूटी तरवार बची भपछरा । प्रपणे मन का भय नहीं करचा ॥२४२३॥ पासरी का उसर
पातर बोली सुरिण हो नरिद । भरत ध्यान ते मो भया प्रानंद । कटयो नहीं मेरो इकबाल । तेरा खरग टूटा मिटे जंजास ॥२४२४।। जवें भरथ भावंगा भाप । होइ सहार भरत गुरण जाय । सुरिम सब लोग अचं भया । सबै विचार उपाया नया ॥२४२५।। मंत्री तब समझाये बैन । देहि सीख राजा नैं मंन । भरत सुमरण ते पातर बची । मपणे मन तुम समझो सची ॥२४२६॥