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मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण
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प्रब वह बचें हमत किरण भात । देखज ताहि लगा हाय ।। दूत का पुनः निवेदन
बोल दुत कोप करि धणां । तुमतो हो बालक बुध्य विनां ॥२३८६।। अतिधीरज है इन्द्र समान । रावल भूप मा तसु मांए। ।। पिता तणं भोले मति भूल ! किसके भोले करत हो फूल ।।२३८७।।
बात कहे तां काहा तुम वित्त । बहुत गर्भ कहा करते हो चित्त ।। उत्तर प्रत्युत्तर
सत्रुधन कहै अरे सुग दूत । वाकी करत है साह बहुत ।।२३८८।। जैसे गज रूई का फल । तिरगा एक कर कस खेह ॥ जसै घरमात वैसाख । लोर्ट भूकं त्यावं तन राख । २३८६॥ हस्ती की सरभर कहा करै । वह मूरखि जो हम से लड़े ।। वाकु कहि तू वेग संभारि । मारू मीड मिलाऊंछार ।। २३६॥
दूत दिया धक्का दे काहि । दूत बल्या दत्ता मन बाम ।। युद्ध को तयारी
मग पास परकास्यो भेद । अतिवीर्य सुरिण कीयो मन खेद ||२३६१ देश विदेश के मानि जोडि । जनक कनक राजा हैं और ।। वनकरण सिहोदर राय । प्रजोध्या ते वाले हरि प्राइ ।।२३६२।। अब वे तुम परि ढोवा करै । तुमतो घर में निण्चल पडे ॥ भतिवीरज कोप्पा तिण दार । बहुत भूपति ने लिए हकार ॥२३६३।। प्रतिवीरज सूजनक तणों सनबंध । सबही प्रारण जुडे बलवंध ।। राम लक्ष्मण कोप्या केहरी । दसौं दिसा कापी भय धरी ।।२६६४ । प्रतीवीर्य गर्भ मनमांहि । तब लगि नहीं देख हरि छांह ।।
सनं भरत सी वांध्या बर । अब वे हमकू मार घेर ॥२३६५॥ पृधीषर का निवेदन
पृथ्वीधर बिन कर जोडि । तुम दोई वार कर हो झोड ।। बार्फ दस जुडिया अधिकाय । कसं जुष करोगे जाय ।।२३६६।। हम कू माग्या द्यो तुम प्राजि । अब ही करें तुमारा काज || बोल रामचन्द्र तब बली । पराये बल पूर्ज नहीं रली ॥२३६७।। पापणा बल तो मावै काम । पराया भरोसा करें न राम ।। रथपरि बैठि रामलक्ष्मणां । सीता डिग सुख मान धरणां ।।२३६८।।