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पद्मपुराण
प्रथ्वीधर के प्राठों पुत । नंदनगर में जाय पहुंत ।। सीता कहे मुण हो रघुनाथ । किम वरण जुध अतिवीरज साथ ।।२३६६ ।। वहेनर्ष दलबल प्रतियणा । प्रतिवीरज किम जावं हा ॥ बा का तो है अतिवीर नाम । बहुत राय याये उस लोम ||२४३०॥
जैसा नाम तैसा पराकरम । अतिवीरज के मन पाया घाम 11 भरत शत्रुध्न को आमंत्रण
भरत सत्रुधन लीया बुलाय । प्रपणे हेतु करो इकठाय ।।२४७१।। तब ईणसी माडो जुष । अपन हिरदै बिचारो बुध ।। राम लखन मन हंसि कर इम कहे । अनंत वीरज नाम वह लहै ।।२४०२।। से निरबल ते कहे अतिवीरज माहरे प्राग हैं अनवीरज ।। हम हैं प्रति ही गंडवा । वाका भय तुम क्या क्या हुवा ॥२४०३|| भरत सत्रुधन कुल प्रताप । या परि वह घाय हैं पाप ।। जे हम मान साकी संक । कैसे चीतेंगे गह टांव ।।२४०४::
जो बल नहीं पापणी भुजा । कहा प्राणि करि है नर दुजा ।। भरत की सेना
भरत के मैंगल सात स झोर । चौंसठ सहस्त्र अश्व हैं और ॥२४०५।। बाकं दस क्षोहरपी दल जुडमा । इस सेती जावं क्रिम लड्या ।। जे हमपं जीत्या नहीं जाइ । भरत सत्रुघन करि है कहा प्राय ।।२४०६॥ जो हम यह सरगते नांहि । भरत दूत मारया था जाहि ।। अतिवीरज सेती जो होती राड । इह उनको हाता तिए बार ।।२४०७॥ रघुवंसीगा न ती लाज । अजोध्या तणे बुझता राज ।। हम रावल की जाएगी नहीं सार । वाकी डार प्रव ही मार ||२४०८।। मोरा ने काहे कू हलू । मारे चाहो सो फरु मतो ।। जब लग दिवस माथय नाहि । प्रबही चालि मारिये जाय ।।२४०६। मतो विचारत ह गई रात । तब ही समझेगे परभात ।। जिन मंदिर में बासा लिया । जिन प्रतिमा का दरसरण किया ॥२४१०॥
वृति परम मुनि कू नमस्कार । पूजा रचना वारंवार ।। गरिसका का स्प
गरिणका मसाई संजूत । करि माई नृत्य बहुत ।।२४११।। बहरि गई नृप के दरवार । देखण चले लोक हजार ।। सकस कला पात्र गुगवंत । नुपके मार्ग गावे बहुत २४१२।।