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कैसे कवि चन्द्रमुखी कहैं । वह षट बधे या सम निस रहे । किम कविराज बाहै मृगन । बई भय दायक सुख की देन ॥२६८) क्यों करि कवि कहै वेणी ध्यालं । इह वह रहे प्रत्यक्ष पताल ॥ क्यों विजय नासा कीर । ए पंषी ए गुण गंभीर ।।२६६॥ सकस रूप का करू बखान । पदमनी की सी सोभा जान || कन्या खेले ही वह बाल । अंचल देषी ताम मुघाल ॥२७॥ राय देख मन संस किया। राणी सेती प्रकासित भया ।
पुधी भई विवाहन जोंग । उत्तम कुल जे नामी लोग ।।२७१।। विवाह के लिये विचार विमर्श
जहाँ देखिये कीबे काज । मंत्री मंत्र समारो साज ।। हम अप भूपन रिभोर । नाली न ज १२७२।। दूजा मंत्री विनती करें । दशानन कुवर विद्या बहु घर । उसम कुल उजियारा पक्ष । उनकी सकल जगत में पक्ष ।।२७३॥ दिन दिन छ है धरणा परताप । उसका जीवं दादा बाप ।। मंत्री बात सति नित लगी । बुखाए पंडित अरु जोतिगी ।।२७४।। साचो लगन देख बहु भांति । राब विग्रह होवें उपसांति ।।
जोतिग देखि साधी सुभ धरी । और बहुत सामग्री करी ॥२७५।। पुपनगर के लिये प्रस्थान
मंत्री च्यार कन्या इक संग । और लोग बहुरंग सुरंग ॥ पहुंचे पुहपनगर में जाय । रतनश्रवा तिहाँ नहि पाम ॥२७६।। पूछे लोग नगर के घने । भीमपुर नगर रतनश्रव मुने । स्वयंपुर नगर वस्या ता पास । सुग्व सुतहा ने कर विलास ॥२७७॥ मंत्री स्वयंपुर नगर कुं चले । बन उपवन मंदिर तिहां घने ।। उत्तरे वन जिहाँ श्री जिनथान । चन्द्रनषा बैठी थी मान ।२७८।। जब उनसों वह कन्या मिली । बहुत बात पूछी तसु भली ।।
तू किम एकाकी हसरा ठाम । कहो कवरण अपलों कुल काम ॥२७६।। बन्नमला से भेंट
चन्द्रनखा बोली समभाय । दशानन है मेरा भाय || सयल राज पर्वत शुभ ठौर । चन्द्रहास षडग की दौर ॥१८॥