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स्वप्न फल
देखी बहुत प्रकार गुरण भरी । अवर बात रा की चित भरी ।। राखी सुं बोलं तिरण बार। जो चाहो सो मांगो नारि ।। १६६४।। तब केकया बीलं सुंदरी। प्रभु मुझ वचन देहु इ घरी || जब चाहूं तब लेस्यू' मांग एह वचन तु द्यो हम त्याग ।। १६६४ ।। सोरठा
महा विचित्रा नारि वा समय उन बुधि करों ॥
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पावँगो तिरा बार, जिए बिरयां इच्छा करें ।। १६६६ ।
इति श्री पद्मपुराणे केकया वर प्रवानं विधानकं ॥ २३ व विधानक
चौपाई
पराजिता रामो द्वारा स्वप्न दर्शन
पद्मपुरा
अपराजिता राखी पटणी | सीलनंत अति सोभा बरणी ॥ भले महूरत पाली राति । सुपनां देख्यानानां भांति ।।१६६७ ।। स्वेता गयंद ऊजले वर्ग । देख्यो सिघ गर्जना कर || देख्यो सनिकी का बाजे बाजे गुण पाहू जागो तक चत्रित भई || जा दशरथ सू सुपने कहे। व्यौरा सुरिण ग्रगणित सुख लहे ।। १६६६ ।
सूर्य उदय देखा परभात
होइ पुत्र त्रिभुवन का घरी । जाकी महिमा जाड न गिरणी ।।
कुल उज्जल बालक तारातरा । नाम जपत होइ पालिंग हरण || १७००
या सम बली न हुजा और प्रेमा अधिक प्रतापी जोर ।।
सुणि पिय सबद भया शारमंद | चित में ध्यानं देव जिसमंद ।।१७०१ ।। सुमित्रा द्वारा स्वप्न दर्शन
सुमित्रा राणी पिछली राति । सुविना देखे उटी प्रभाव ।।
गर्जत देख्या सिंह केहरी लक्ष्मी कलस सकल गुगा भरी || १५०२ ॥ कमल फूल घट ऊपर घरे | देखे समुद्र लहरि उच्छरे । सूरज उदय निर्मला देखि । देख्यो पूनम चंद्र विसेष || १७०३ ।। सुदरसण चक्र देव तिरा बार । जागि उठी मन हरस जयार ।। पति सो कही सपने की बात । सुखे सुपन फल नाना भांति ।।१७०४
होसी पुत्र महाबलवंत । सीन खंड का राज करत ॥
ताकी सरभर अवरन कोय तीन लोक ताको जस होय ।।१७०५ ।।