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________________ १८४ स्वप्न फल देखी बहुत प्रकार गुरण भरी । अवर बात रा की चित भरी ।। राखी सुं बोलं तिरण बार। जो चाहो सो मांगो नारि ।। १६६४।। तब केकया बीलं सुंदरी। प्रभु मुझ वचन देहु इ घरी || जब चाहूं तब लेस्यू' मांग एह वचन तु द्यो हम त्याग ।। १६६४ ।। सोरठा महा विचित्रा नारि वा समय उन बुधि करों ॥ P पावँगो तिरा बार, जिए बिरयां इच्छा करें ।। १६६६ । इति श्री पद्मपुराणे केकया वर प्रवानं विधानकं ॥ २३ व विधानक चौपाई पराजिता रामो द्वारा स्वप्न दर्शन पद्मपुरा अपराजिता राखी पटणी | सीलनंत अति सोभा बरणी ॥ भले महूरत पाली राति । सुपनां देख्यानानां भांति ।।१६६७ ।। स्वेता गयंद ऊजले वर्ग । देख्यो सिघ गर्जना कर || देख्यो सनिकी का बाजे बाजे गुण पाहू जागो तक चत्रित भई || जा दशरथ सू सुपने कहे। व्यौरा सुरिण ग्रगणित सुख लहे ।। १६६६ । सूर्य उदय देखा परभात होइ पुत्र त्रिभुवन का घरी । जाकी महिमा जाड न गिरणी ।। कुल उज्जल बालक तारातरा । नाम जपत होइ पालिंग हरण || १७०० या सम बली न हुजा और प्रेमा अधिक प्रतापी जोर ।। सुणि पिय सबद भया शारमंद | चित में ध्यानं देव जिसमंद ।।१७०१ ।। सुमित्रा द्वारा स्वप्न दर्शन सुमित्रा राणी पिछली राति । सुविना देखे उटी प्रभाव ।। गर्जत देख्या सिंह केहरी लक्ष्मी कलस सकल गुगा भरी || १५०२ ॥ कमल फूल घट ऊपर घरे | देखे समुद्र लहरि उच्छरे । सूरज उदय निर्मला देखि । देख्यो पूनम चंद्र विसेष || १७०३ ।। सुदरसण चक्र देव तिरा बार । जागि उठी मन हरस जयार ।। पति सो कही सपने की बात । सुखे सुपन फल नाना भांति ।।१७०४ होसी पुत्र महाबलवंत । सीन खंड का राज करत ॥ ताकी सरभर अवरन कोय तीन लोक ताको जस होय ।।१७०५ ।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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