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पुनि समाचंद एवं उनका पमपुराण
दशरथ का पूर्व भव
कमल गर्भ मुनि पागम भया । सुरिए नरेस पूजा कू गया ।। प्रदक्षिगग। दई नप तीन । नमस्कार करि बोल दीन ।।२०६९।। स्वामी कहो धरग समझाय । पाप पुन्य का कैसा भाय ।। कहैं मुनीसर सुणो नरेस । पुनि त जस होव देस बिदेस ।। २०६०।। पुन्ग तेह्र संसार में रिद्ध । पुनि ते पाय सगली सिद्ध ।। फाप करम नित कर ते मून । दया पाल हिस्या रूद ।।२०६१।। मरि कार चहूंगति माहि भ्रमई । खोटी गति मां बनस अमई ।। राजा सुण्यां घरम का भाव । थर हर कर कंप्या सब गांव ॥२०६२।। उत्त नरेन्द्र उपसमी द्विज । दिव्या पाल ब्रह्मचर्य ।। तप करि पहंता स्वर्ग विमारा । पख्य पांच तिहां प्रायु पमाण ।।२०६३।। प्रोहित जीव मिथ्या मन धरी । न घरचा राजा के घरी ॥ उहा ते लोक य भए ग्राह । रापहस्त मत का जीव है राइ ॥२०६४।। प्रोहित जीव त्रय बड़वा भया । हस्तनी गर्म बडवा जिय चया । हस्ती भूपति का गजराय । बहुत दिबस तिहाँ गए विहाय ।।२०६५ जुब शम लागे बहु धाय । छुटा प्रांगण संग्राम की ठांव ।। धीमत पुत्र हसति घर जाइया । जोजन गचा राणी व्याहिया ॥२०६६।। पर सूदन पुत्र हस्ती का जीव | दिन दिन बढे सुभट की नींब ।। जाति स्मरण उपज्या तिरा वार । कमलमर्द पले तप सार ॥२०१७॥ सतार स्वर्ग पाइया विमाण । हस्ती जीव मंदार वण प्रारम् ।। भया मृग तीहां पुरी याव । उपग्या गरभ भीलन की ठाव ।। २०१८|| कालंजर भील कहाचे नांव । आखेटक करम स् राखे भाव ।। मरि कर गया सरकरा भूमि । कठिन करम तिहां पाया झूमि ।।२०६६]] भ्रम्पा जोनि चरासी लाख । समकित कदे न मुलत भाप ।। भ्रम संसार मनुप गति नही । तिहा पाइ कछु पाश्रम गही ॥२१००। मैं अब आई संवोध्या तोहि । असुभ करम का टूटा मोह ।। करी तपस्या छोडे प्राण । रलमाली नृप तू भया यान ।२१०१।। रत्नमाली अन सूरज रजै । दोउं करया पाप का कर्ज ।। तिलक सुन्दर मुनि पै तब पाइ। दिक्षा लई मुगति के भार ।।२१.२।। सूरज रज महा सुक्र विमाए । उहां ते पय रसश्च भया प्राण ॥ नंदघोष ग्रीवक ते चा । सरवभूति मुनिवर घे भया ।।२१.३॥ चय इक देव हुवा है जनक । रत्नमाली जीव भया है कनक ।। इम्। विघ मुश्यां सकल परजाद । संसय मन त गया बिलाय ।।२१०१।