________________
मुनि सभाचंद एवं उनका पयपुराण
२२९
चौपई सौता की प्यास बुझाना
पंषीयातणी सुहा बोल । छाया सीतल बेल तंबोल ॥ उत्तरमस्तोही बन गए । महाभयानक देखत भए ।।२३०६।। सीताने लागी तिस घणी । पर्ड चूप बहुत अणमणी । कदिनकट न देखीए नीर । लागी त्रिषा अर्मत अधीर ॥२३१०॥ अंचे चदि देख्यो कोई ठाम । उहाँ ते देख्यो अरन इक गांम ।। कपिल विप्र बस तिस ठोर 1 अगनिहोत्री अरु ठाढी पोल 11२३११॥ यहां ते गए ब्राह्मण धर एह । करुणावंत परम की देह ।। देख प्रदेसी दया ऊपजी । सीतस नीर झारी भरि लई ।।२३१२।। पाणी पीय लिया विश्राम । कपिल ब्राह्मण पायो ताम ।। वी' पोट कांक्षा परि लियां । लकडी का बोझा सिर किया ।।२३१३॥ अंगोछा मस्तक परि लपेट । मैली षोती बाधी देह ॥
बांध जनेऊ तिलक ललाट । जाणं होम क्रिया इह बाद ॥२३१४॥ विप्र द्वारा कोष करना
देह कूबड़ी चपटी नाक । अति कुरूप रही तसु प्रांस ।। देखि विदेसी घर के पास 1 क्रोध वचन मुख बोल्या तास ॥२३१५॥ मीट चकार मुस्वस्यो बोल वरहाई । कुवचन कहीं त्रिया ने जाई ।। देसी क्यू बैटमा दीये । लाज नहीं कछु इनके हिये ॥२३१६ । पोन पोल फडता फिरई पई। असे इनको जक नहीं पाई ।। ए उठि चलेइ देख सब लोग । बहुन भीड़ दरसन के जोग ।।२३१७।। कपिल विप्र लोगां सौं कहै । ए निलज्ज ऐसे ही रहूँ । कहा इनका दरसन तुम करी । मूढ लोग तब बोलें बुरो ॥२३१८।। लक्षमण कोपि कपिल द्विज गह्या । फिर फिराय पटकन कू चहा ।।
रामचंद चित करुणा पाइ । कपिल विप्र कू दिया छुडाइ ॥२३१९।। दया के पात्र
हरि ने समझा रघुनाथ । इस पर कहा उठावो हाथ ।। जती संन्यासी विप्न अतीय । बाल वृद्ध नारी पसु जीन ॥२३२०॥ पसु अपाहज मत मारो भूल । इनकी हत्या है अघ मूल ।। प्रापते सबल ता ऊपर चोट | परजा जीव दया की प्रोट ।।२३२१।। लक्षमण दया चित्त में परी। धन्य साध जे रहैं वन पुरी ।। पापी किरपण जे अग्यांन । उनको कलो न पाणु थान ।।२६२२॥