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पद्मपुराण
अत जीत काग। भलो । रामजत चाटती ।।
असुभ सौरग की छोडि बचाइ । वन ही वन निकसे रघुराइ ।।२२६८।। हनभूत राजा से युद्ध
रुद्रभूत राजा ति ठांम | सेना घणी क्रोध के काम ।। रामचन्द्र से मांडमा जुध । हारी सेन्यां भई असुष ॥२२६६11 रुद्रभूत पग त्याग्या प्राइ । रामचन्द्र का दरसरण पाइ ।। रामचन्द्र पूई घिरतांत । उन भाषी पिछली सब बात ।।२३००।। कौसंबी नगरी का नाम । अहित अगन विप्र तिण ठाम || प्रतिसरजा ताकं नारि | रुद्रमत पुत्र मई अवतार ||२३०१।। सात दिसण का सेवणहार । तसकराइ करत घेरपा कोटवाल । विस्वानल राय पास ले गया। नृप तब उस पर कोपिया ।। २३०२।। कहक इस सूली देइ । किंकर उस गह्या बहुत दुख देई॥ सेठ एक नृप प्राग जाइ । विप्र जाणि के दिया छुडाइ ।।२३० ३।।
उहाँ त में प्राइया इह देस । काकोनद मलेछ पं भया नरेस ।। बालषिल्प को मुक्त करना
रामचद्र इम आग्या दई । बालपित्य नै छाडो सही ॥२६५४।। मलेच्छराय ने दीया छोड । सेवा करी दोय कर जोड । सभा सहित कुबडपुर माइ । करी वधाइ बालषिल राइ ।।२३.५॥ सिहोदर बच्चकिरण भी मिले । इंद्रदत्त बिदा कर चले ।। इनका दुख कीया सब दूर । बालषिल सुख लह्या भरपूर ।।२३०६।।
दहा रामचंद्र प्रति ही बली, लक्ष्मण भी बलवंत ॥ परफाज के कारण, करें उपाध अनन्त ।।२३०७।। इति श्री पापुराणे बालषिल्य विमोचन विधानक
३० बां विधानक
अडिल्ल बन आमरण
रामचन्द्र लक्ष्मरण कुमार साथै सिया । प्राधीरातनि पंड गमण तहां तें किया ।। बिदस धन सुप्रसन्न नदी परवाहनी।। तरवर अशोक सधन वन शोभा बनी ।।२३०८।।