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पपपुराण
बस्ती में दिन माग
अब हम धलि बनधासा लेइ । बसती में फिर पांव र देश ।। वनफल बीण करें प्राहार । किस किस की सुगिा माई राष्टि ।।२३२३ ! । बसती तजि आये वनवास । अंधकार निभवासर साम ।। वरखा रितु धगाहर चहुं ओर । काली वट सोम चिहुं पोर ।।२३२४।। रवि की किरण छाइ धग लई । सब पृथ्वी अंधियारी भई ।। वरखे मेह मूसलाधार । चमकं दामिन घारू बार ॥२३२५।। लक्षमण राम दुचिते घो। छाया बिणा रहबो किम वर ।।
दृष्टि पसार देखि बिपास । मंदिर देखे चित्त उल्हारा ।। २३.६।। राम लक्षनरण का मान्दर में विधाम करना
मंदिर में बैठा तब जाई । कपड़े निचोड करि दिये सुखाइ ।। भई रयम पोट्टे तिण ठाम । इतरकरण देव का नाम ।।२३२ 311 इल् देखि ततक्षमा भजि गया । विनाषक प्रत संदेसा दियां ।।
दोड विदेसी अस्त्री एक । मेरे थान रह्या कर टेक ।।२३२८।। देव द्वारा मायामयी नगरी को रचना
देवता बोल्यो अघि विचार । बलिभद्र नारायण अवतार ॥ ए पाये हैं मेरे देस । सेव कर सेवग भेस ।।२३२६।। नगर संवारया मिदर भला । रल बधित सवर्ण निरमा ।। वाही जागई सेज्या संवार । गिलम चंद्रवा वांदरबाल ||2|| देव पुनीत ग्रामषा प्रगी । पागणी अन्न गोंज मन यो ।। हाथी घोडा रथ पालकी । बसती बनी नई गम की ।।२१। लक्षमण राम उठे परभात । सीता जागी बीती रात || गंधर्व जात के मार्य देव । बहुत प्रकार करी सुर सेव ।।२३३।। राम लक्षमण तब करें विचार । या वन मैं तो थी हजार किस प्रकार ए भई विभूति । नय यह वनसुर याय पहंत ।।२३६३।। करि ईहोत बीनती करें । वप्लो राज हम मेवा करें।
बठि झरोसे भुगतो सुख । नगर देख मूले सव दुग्ध ॥२३३४।। कपिल ब्रामण को चिता
कपिल बि सिर लकड़ी भार । बन तें काठि आए तिण दार ।। निषा माहि देख है नगरी । कंचन मंदिर रतन सू जहो ।१२३३५।।