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मुनि सभाचंद एवं जनका पद्मपुराण
सिंघाएगा ऊचे बैठाय । कर ग्रारती से पाय ।। रतन जडित सोने के चौक । कर उबटण मूले सोक ||२२८३।। करि सनान फिर भोजन खाइ । बिदा होइ मागे जाऊ ।। वन में देखी सुभट मेटली + मारग को रोकी जिहां गली ।।२२५४॥ ग घसि करि तिर भागे गमे । कंचुकी देवि अचं मै भए ।। देखी काम्या बहुत स्वरूप । वा ममान कोई नहीं चुप ।।२२८५।।
सामुद्रिक की सोभावणी । अन्य कहां लग बरम्, गुणी ॥ लक्ष्मण द्वारा प्रान
लक्ष्मण निस न पूछे बास । बालषित्य नृप मेरो तात ।।२२८६।। पृथ्वीदेवी कुखि हूं भई । कुबड नन महा सुख मई ॥ घरम राज मैं बीते घडी । दुरजन दुष्ट सेती थरहरी ॥२२८७।। राजा मलेच्छ है रुद्र भूत । चहि आए सेना संयुक्त ।। पिता मेरे से किया शुष । वांधि ले गया करि बल बुध ।।२२८८।। पृथ्वी देवी कारण कंत । निसदिन रुदन कर बहुमंत ।। वसुधा मंत्री निमती बुझिया । कहि हौंबहार सूजिया ।।२२८६।। राणी जब बालक ने जणं । सो तो सब दुर्जन कू हणं ।। महरि गज नगरी को करें । दुरजन तिस के पानां पड़ ।।२२६ कल्याण माला हूं पुत्री जशी 1 निमित्त प्रानी में भैसी भरगी ।। कन्या एक पुरुष के भेस । वनमें रहे नित्य दिसष ॥२२६१।। दोई पुरुम को दरसरण लहै । ताहि देख दुख कोई न रहे। सिहोदर नृप को मैं दई । या कारण मैं वन में रही ।।२२१२।। मेन्यां मो पड़ी । बिह पास । कुचुकी निकट मोहि इह पास ।। मैं तुम दरसन पायो प्राज । हवा मनवांछित मम काज ।।२२६३|| एक अचंभा मो मन घणा । जो मैं पुत्र होता गुराण गणा ।। तो नगरी बा होता माज । पुत्री कैसे पावै राज ॥२२९४।। रामचन्द्र इह भाम्या दई । यही भेष रहो तुम थई ।। तीन दिवस रहिगो वन माहि । प्राधीरात छोडि तिहां जाइ ॥२२६५।। कल्या जागि कई बिललाइ । में सोय गई वे उठ गये प्राय ।। मेकन्ला नंदी उत्तर वन गए । करकारण वन देखन भए ।।२२६६।। वाम वृक्ष वेर के काग । देख्यण पेड नारियल लाग ।। सीता तबै विचारघा सौंन । हसी जुध दो घडी में पौन ॥२२६७।।