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पपुराण
नमस्कार प्रतिमा कू करै। तुमारी काण न मनमें घरै ।। लोक में कछु समझत' पड़ । रंधर विन राजा सों कहै ।।२२१३।। सिंहोदर मन कोप्या राई । गते नयन क्रोघ के भाय ।। बृहद गति बन्न किरण पं. मगली बात कही समझाइ ।।२८१४:। सिहोदर कोप्या है गां । ताका जीव क' चा हण्यां ।। जे तुम भाग जाइ किरण ठाम । तब तुम बचो तजो यह गाम ।।२२१५६॥ पूछ त जारणी किरण भांति । मोसू कहि समझावो बात ।। कूदनपुर नगरी का नाम । समुद्र सिंग वणिक तिथ ठाम ||२२१६।। जमणा माम माकै धनी : दो
ग प ।। विद्युत ज्वाल प्रथम सुत्त भया । वृहतगत दूजा कू थया । २२१७ मोकू पिला ठम्य बह दिया। विराज हैत उज्जेणी गया ।। कमला लता गरिएका कदेखि । मन मटक्यो ता रूप बिसेष ।।२९१८॥ प्ररथ खोयो सब बलिद्री भवा । अंति समझ चोरी चित दिया । सिहोदर मंदिर गरिएका गई । श्रीघरी गिरणी को देस्त्रत भई ।।१२१६। कुडल देखि चितवै तिए बार । अपणे 'अल धरे उतार ।। सखी सु' बोली बेस्या अस्त्री । मोक कुइल लाग बुती ।।२२२०॥ बसे कुडल है रागी कान 1 असे मोकू दीजे अनि ।। मैं सुरण नृप मंदिर में गया । सिंहोदर मू पूछे क्रिया ।।२२२१।। किण कारण तुम दुचिते घणे । चिता कवन तुम्हारे मने ॥ बज्रकिरण मन दुविधा वरं । मरी कांग नब नहीं करें ॥२२२२॥ प्रतिमा में वह कर नमस्कार 1 मान मंग बर ममा मारि।। मेरा प्रत्र खाबै वह राय । मोसू ऐसा करे दुराव ।। २२२३।। बाक मारू तो सुख लहूं। वह मतो मैं तो सू कहूं ।। ऊंचं चति देखियो नरेस । धेरणा उननं तुम्हारा देस ।।१२२४|| वधकिरण तब गढ मैं गया । कागुर कांगुरै बैठा मुरवा ।। पौलि कियाड मजबूत दिवाय । जुध निमित्त का बेटा गह ।।१२२५।। रंधरविसुत सिहोदर का दून 1 बज किरण पं प्राय पहुंत ।। कहै क तू प्रतिमा कू नवे । जती पारित सुगिा वयू निजद ।।२२२६।। जनह सुहावै ग्रेसी रीत । सब चाहे किया प्रतीत ।। तु काहे क खोब जीव । राजा प्रतै न वाबो ग्रीव ॥२२२७।।