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मुनि सभासद एवं जनका पद्मपुराण
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रामचन्द्र ता करुणा करी । तू कहा वाल्यो किरण नगरी ।। सिंधोवर मिलन
देस मालवो नगर उजण । करै राज सिंघोदर सैण ॥२१६८।। नसापुर नगर थकी हूँ चल्यो । मफिरमा सम्टी भलो ।। गमचंद्र पूछ फिर बात । उरण ममकिन पायो किरण भांति ।।२१६६।। पंथी भरणे राय विरतांत । दशारण बन अहेडे जात ।। इह बन छोडि किरण कारण गया। प्रीतदरसन मुनि दरसग भमा ३.२२००।। ग्रीष्म रितु पर्वत बहू तपै । ध्यानारूद तहां भगबन जपं ॥ राजा मुनि ने पूछ याइ । काया कष्ट महो किरण भाइ॥२२०१॥ मनुष जनम के लाहा लेइ । तप करि वाद जला देहि ।। आत्मा कु कही दीजे दुःख 1 पंचइंद्री का भूगतो सुख ॥२२०२।। भोजन कारण घर घर फिरो। निरस सरस प्रहार करो ।।
आतम दुख करो तुम बुरा । मनुष्य जनम दुर्लभ है खरा ॥२२०३।। बोले मुनिवर भूपति सुरणौ । मैं निज सुस्व कहां लग भणु' ।। गजा हंस करि पूछ बात । तपै सिला दुख पावै गात ।।२२०४।। उड़ घूल' दुख सहै सरीर | भूख पियास परीसा पीड ।। मुनिवर भरणे सुणु भूपाल । इन्द्री विषय दुख का जाल ।।२२०५६ सात नरक भुगत हरण साज । विषय सेच्या बिगरै सहु काज ।। जे जीव विषय इन्द्री की करें । मान तजत कछु बार न धरं ॥२२०६।। कारण मोह पिप है जीव । नमैं संसार दुख की नीव ।। राजा सुणि चरण कुनया । पाग प्राक्रम सगला मिट गया ।।२२०७। जती सरावग का सुरिग धर्म । अणीवत लीया सुभकर्म 11 मुनि प नेम लेई तिरण बार । अरिहंत बिन न करू नमस्कार ।।२२०८॥ गुरु निर्गथ अरु शास्त्र जैन । इनकू सेकं कर मन चैन ।।। राजा पाये अपने गेह । दया परम सुलाया नेह ।।२२०६।। विषय बिना रहे नहीं घटी। श्री जिनवाणी हिरवं घरी॥ प्रीतिवरधन मुनि मास उपास । निषल्या धरि भोजन की मास ।।२२१०।। बजकरण द्वारा पेषण किया । मुनिवर · तब भोजन दिया ।। बरखे रतन पुष्प तिरा बार | मुनिवर जब लीयो भाहार ।।२२११।। राजा पासि रहा उहै प्राइ । नमसफार कर किए। प्राय ।। मुनिसुव्रत की प्रतिमा घडाइ । मुदडी में थे वा लगाई ॥२२१२।।