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पपुराण
सब परजाइ दसरथ सुष्पा, ज्यों ज्यों भमियां हंस ॥ पुन्यवंत सब जग प्रगट, सवतै उसिम वंस ।।२१०॥
चौपई रशरण का वापिस घर पर माना
राजा फिरि प्रायो घरमांहि । मंदिर गये भई तब सांझ ।। सरद रितु सुहावणी घणी । प्राभूषन की सोभा घनी ।।२१०६५। चंदन अगर सों अंगीठी भरी । यास मदक रही लिन खरी।। ऊन मई सेज्या पाटवर सोडि । केसर भरे गीदवे तिण ठोर ।।२१.७।। दुग्धपान के कीजे भोग । जो दूख मल देख प्रसोग ।। बिछे गिलम तिहाँ प्रति ही अनूग । तरणे चंद्रवे सेज्या रूप ।।२१।। उत्तम औषध खावे वरणाइ । तिनले गुण वर में नहीं जाइ ।।। पैसे मुखिया मुगतं सुख । दुखियां तरणां सुणु अब दुल ।।२१०६।। फाटे बसतर लूपी देह । मैली मन पर पाप मनेह ।। काठा मन प्रनं पानी भये । द्यौस होई धाम में तपै ।।२११०।। कठिन कठिन सों बीत काल । पाप करम का एही हवाल ।। जैसी करली तैसी गति । जाण र संसारी थिति ॥२१११।।
शुशुभ अशुभ का भाव ए, देखो समझि विचार ।। सुपना का सा सुख ए, जाति न लागं चार ।।२११२१
चौपई पैराग्य भाव-रामान को राम मोपना
राजा मंत्री सब लये खुसाइ । मब हम दिक्षा लेस्या बाई ।। रामचंद्र को सोप्या राज। प्रजा तरणी बह राखं लाज ॥२११३॥ मंत्री कदन कर तिए बार । राणी रोई महल मझार ॥ भरत विचार कर आहि । सोचं बहुतिहां मै दुखदाहि ।।२११४॥ अषम पुम्ब म तरचा । मोत मांही राक्षा करया ॥ अब मैं दिक्षा लेस्यु पिता मंग । ओं नहीं हवं मेरा मान मंग ॥२११॥ कैकेपी पुत्र देख्यो विरकत्त । राजा वर प्राण्यो तव विस ॥ मई भूप पास तिसरा पार । सकल सभा कीयो नमस्कार ॥२११६॥