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मुनि सभाचंब एवं उनका पयपुराण
धरती उठाऊं वक्राकार । भरत माहि बल कहा अपार ॥ नगरि मोहित देहु निकाल । राज देहु रामचंद्रगण इस बार ।। २१४४।। बरिगना मा । दोध जहर सब ही मिट गयो । पिता प्राम्या किम दारी जाय । हम भव भव करम बंधाय ।।२१४५।।
रामबनवास
राम मांहि मोते बल अति । उपां न प्राणी अपने चित्त ।। तातै कहि हैं ए वर्ण । पिता तणी प्राम्या नहीं हणे ॥२१४६।। प्राग राम अने पाछै सिमा । लक्ष्मण ताक पाछ किया ।। श्री जिन स्यालय जाय । विष सेती बंदे जिन राय ॥२१४।। मकल कुटुब नगर का लोग । पार्छ लागि चले मन सोग ।। राजा दशरथ भरथ सत्र घन । सब रणवास भयो सब मून ।।२१४।। मोहनत बिदा कर दिये । वे तीन तवं वन मा गए ।। रो स्वर्ग लोक के देव । सबै पृथ्वी प्रगा पायो भव ॥२१४६।। लोग कहैं चलिस्यां संग सम । बन खंड में कसें बिसराम ।। सूरज देख दुख का भाव । जाइ छिप्पो प्रस्ताचल ठाम ।।२१५० ।। पंछी रुदन करें चढ़ रूख । जलहर गए सकल जल सूत्र ।। भई रयण जिण पंदिर जाह । नमस्कार करि बैठा ताइ ।।२१५१।। भरत पत्रुघन पायो राज ! दसरथ गयो दिष्या के काज ।।
राज बहुत भए गग्य । राज भोग सहु जन करि त्याग ||२१५२।। इति श्री पपपुराणे भरत राम, राम लक्ष्मण वनवास, दशरथ विक्षा, विधानक
२८ वां विधानक
चौपई पनवास की पचम रात्रि
रामचन्द्र लक्षमण अरु सिया । जिन मंदिर में पाश्रम लिया ।। भई रयण सोया कछु बार । परध निस चाले घनुप संभार ॥२१५२।। निकसे एक नगर के बीच । देले मंदिर ऊंचे अरु नीच ।। अपनी अपनी सेज्या ठोर । सोब लोग न सुणिये सोर ।।२१५४।। कांमी थके त्रिया गल लाग । केई सुरत करें हैं जाग 11 माई निया मदन सिंस गया । कोकिला पंडित जन किया ॥२१५५१५