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पुत्र कालित्र सगा नहीं कोय । संपति तणां विछोहा होय ।। देही प्रादि कोई साथ न चले । अब मैं फिर माया में मिले ।।२१३१।। जो तुम दिक्षा समझी भली । मैं भी संयम ल्युमन रली ॥
हमने किम नाखो इह माहि ! राज भोग की इच्छा मांहि ।।२१३२।। राम लक्ष्मण द्वारा प्रस्ताव
रामचन्द्र लक्ष्मण दम कहै । हमारं चित्त प्रेसी क्यू' रहै ।। तुम बाल घर जोवन वेस । तुमकू दियो पिता सब देस ।।२१३३।। अजोध्या नणों राज तुम करो । मज आथम दिशा धरी ।। दोई कर जोडि भरत इम क है। तुमारी प्राग्या में सरदहै ।।२१५४।। तुम प्रमुजी कार हों घिस की सेव ! मोकू यहि समझामो भेद ।। रामचद्र भरत मुइम कहैं । हम वन वेहड किनर रहे ।।२१३५।। . सेवा करि हैं कुगा की जाय । वन में बैठि जपत्रिणराइ ।।
दशरथ के चरणन को नये । बिदा मागि माता पं गये ॥२१३६।। माता के पास जाना
राजा दसरथ भयचक्र भवा । माछा बाइ धरणि गिर गया ।। सव सेबग मिल थामे दह । पुत्र बिछोहो व्याप्यो तेह ।।२१३७।। माता सुगात साद पछाई । बड़ी बार तन भई संभार ।। माता कई मुणु रघुनाथ | हम कु भी ले चालो माथ ।।२१३८ ।। भरत राज पिरथी का रहौ । तुम अपने घर बैठा रही ।।
रामचंद्र बॉल सूण माल । रवि प्रागें शशि की नहीं कान्ति ॥२१३६॥ राम का उत्सर
हम प्राग किम रह राज । वह पट बैठा हम कू लाज ॥ हम दक्षिण दिस करि हैं गौंन । बन बेहद निहां नाहीं भौन ।।२१४०।। नुमकू किस विध लेफर जांहि । गैला में दुम्स कसे साहि ।। जब हम कहीं लहे विथाम । तब तुमसों मिलवे का काम ॥२१ ४१॥ सीता साथ लही तिरणबार । वज्रावत्तं धनुष संभार ।।
हम तुमकू कहा देख्या कपूत । भरत ने सौंपी राज विमूत ॥२१४२।। लक्ष्यसाहाराकोष करना .. : .:. I :.:.... .. .:
पिता न समझा धरम की चाल । हम कू'दीया देस निकाल।। त्रिया परित्र भूरूपा राय । लक्ष्मण ली तब भौंह चढाय ॥२१४३।।