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मुनि सभापंच एवं उनका पयपुराण
कवरण पुण्य ये पाई रिद्ध । जनक कनक सुत च्याज घिध ।। सरवभूति मुनि भवधि विचार । ज्यों ज्यों भ्रमै संसार ।।२.५६।। हम तुम रुल्या अनंती बार । श्रमता कबह न पायो पार ।। तीन लोक में नहीं विसराम । स्वर्ग मध्य पाताल सुगंम ।। २०६०।। च्यारौं गति में डोल्यो हंस । कर उत्तम कब नीव बंस ।। सप्त तत्त्व के सूच्छम भेद । जाय मुगस संसम तरु छेद ।। २०६१।। नित प्रति राखे उत्तम ध्यान । जन घरम का सुर्ण पुराण ॥ दान चार दे वित्त समान । प्रौषद अन्न अभय का दांन ।।२०२६२।। जीव तत्व का सुरण बयाए । एक जीव निरंजन जान । दोइ प्रकार संसारी प्रांन । भव अभव्य जीव धरि ध्यान ।।२०६३॥ भव्य सोही जाणं ये भेव । मन वच सस्य जिनेस्वर देव ।। पूजा दान सामायिक करै । पाप कर्म सर्व परिहरे ॥२०६४।। तो निश्चय सिद्धालय जाय । समकित सूरह दया के भाव ।। कई सिद्ध होइंगे और 1 पावंगे तो निर्मय ठौर ।।२०६५।। प्रभम्य जीव दरसन से दूर । देव शास्त्र गुरु समझ नहीं मूल ।। जिन वागी मान मुहाइ । गुरु कुदेव कुशास्त्र ते पार ॥२०६६॥ मक्ति दया न समभ, कूछ । च्यारों गति मांहि सर्व तुच्छ ।। उपजत बिनसत लगे न वार । ऐसे जीव ले संसार ।।२०६७।। तिहं लोक घिरत घट जिम मरें। सिहां के जीव नहीं नीवरे । मोक्ष थानक भरि पूरन थाइ । नरक निगोद न रंच घटाइ ।।२०६८।। परम अपरम क जीब प्रजीव । काल प्राकास द्रव्य षट नीव ।। नय पदार्थ प्राने पंच काय । सकल भेद कहियो समझाय ॥२०६६।। सेना पर नग्र तिहां बसती घणी। उपसत नप भामणी तस तशी। जैन धर्म सौं प्रीत न चिप्स । चंडी मुंडी मंडी पूजे सु विस १३०॥ मिथ्या परम करें मन लपाय । तीरथ तीरथ सप्त भ्रमाय ।। दया दान समझ नहीं भेव । पाप प्रमाद की इच्छा करे ।।२०७१॥ कर परत वा कंद मूल । तिल दाणा बहुला फल फूल ।। सिंघाडा वींध्या को पून । परत खांग ने सीधा लूए ।।२०७२।।
काया पोष परस बहू किया । झूठी क्रीया सौ मित पीया it . जल में कूद विराषं मीन । आश तिलक मान करि हीन ॥२०॥