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मणि भगानं ए; शायपुर
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वे मलेच्छ जैसा सुण लिया । वहां सिंध अग्रे चालिया ।। जो तुमारी सरभर कहा होइ । ता परि भला कहें सहु कोइ ।।१८०८।। हम हैं प्रमुजी भाग्या देह । सकल म्लेच्छ मिलाऊं खेह ।।
राय भगा तुम हो लघु वैस । वे म्नच्छ भयानक देस ॥१८०६।। किस्ग पर जुध्र करोगे जाय । असे भूप कहीं समझाय ।। रामचंद्र तब उत्तर वह । स्यंघ पुत्र किसका भय करें ।।१८१०।। हस्ती जूथ सबद सृण डरै । वे भाज सकल सुभ बीसरे ॥ निगामा एक करें वन दार । हम सू जोये वह मान हार ॥१५११।। अइस उनहीं लगाऊं हाथ । फेरि न बोल' काहू साथ ||
गमचंद्र लक्ष्मण तिहां चले । सुर सुभग संग लीने भले ॥१८१२।। राम का मिथिला ममन
मिथलापुर मां पहुंचे जाइ । इनका दल दृष्टि न रामाद ।। जनक कनक ने छोडे बारण ! मारि म्लेच्छ किये घमसारण ।।१८१३।। उत मनेन्द्ध नीसांन बजाय । जनक कनक भेट्या गा लाइ ।। दाजे बजै भेरि करनाइ । बहुत मूग माये उस ठांइ ।।१८१४।।
जनक तरणा दल हटया जारिग । धणे लोगां तज्या परांग ।। राम द्वारा युख करना
श्री रामचंद्र धनुष टंकार | गया धनुष लक्ष्मण कुमार ॥१८१५॥ पडे घाइ दल ऊपर जाय । दुई वां जूध भयो वह भाई। दुरजन जाय बहवट करें । तब म्लेच्छ सब फिरि के लरं ॥१८१६|| लक्ष्मण ऊपर पाये धाय । नोडचा रथ मारे दूरजन राय ।। श्री रामचंद्र पहुंच्या निह बेर । मारि म्लेच्छ किये सब केर ।। १८१७॥ इनका है पविजेग प्रताप 1 इण प्रकार धाए प्रभु श्राप ।। अंशका भाजे जिम देवि । रवि की प्रगट किरण विशेष ॥१५१८।। जैसे पटल महा धनबोर । माग 'फाट पवन के जोर ।। मलयां की फौज चली सब भाग । ए दोडे उन पीछे लाग ।।१८१६।। हम अल बल हवा घणां । राम प्रसाद पौरिस प्रति वरपर ।।
कई जिसने मारठोर पड़ी लोथ तिरण को नहीं बोड ॥१८२०।। राम का प्रादेश
रामचंद्र इह पाग्या भई । हिंसा जीव करो मति कोइ ।। भागे का पीला भक्ति करी । अब तुम अपणे थानक फिरो ।।१८२१।।