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भामंडल की चिन्ता
२६ वां विश्राम चौपई
गई चउमास सरद रितु आई । कालिक मास यहा सुखदाई ॥ घान पांण पांणी का स्वाद । कूले कमल करें अलि नाद ।.१६६० ।। चंद्रसूरज की निरमल क्रांति । उज्वल जन सो बहु भांति || आमंडल मन चिंता घणो । अई कंसी करम गति बनी ।। १६६१ ।।
पद्मपुराण
मम इच्छा सीता की करी । व्याही राम भूमि गोवरी ।।
हम विद्याधर देव समान । हमारी कयन रही कांग्२१६६२४ मी खुटक रहे दिन रात वस्तज कही मन की बात ।। बृहतकेल सामलि सव व 1 करें सोच मन मां बहु खेद ।।१६६६ ।। वोल अन्य मंत्री तिहां घराणं । दात्र न को हम पास ई ॥ सीता सम कोई नहि नारि स्वा मध्य पाताल मकारि ।।१६६४।।
रामचन्द्र सम अवर न बली । ते सीना सु मान ली । लक्षमण त
यो प्राकमं । उनकी सदा सहाई बमं ।। १६६५॥
।।१६।।
जब सीता व्याही थी नाहि । तव चोर ल्यावते ताहि ॥1 तब कैसे लेता रामचन्द्र । हम किया जब झुठा अब वह कैसे हरियन जाय । राग लषा से देव डग || बृहस्पति के मंत्री तब कहै। कहा सोच तुम मनमें रहे ।। १६६७।।
विद्याधर हम जइसा देव । सीता हरन लागे ई भेव ||
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राम लक्ष्मण मांई जुभ भूमि गोचरी लई असुन ||१८|| हम विमाण चटि ले अकास | भूमिगोचरी के पुरवा ॥ भामंडल वीमाण चढ चलें । गृह
मंत्री सब मिले ॥१६६॥ बहुत सुभट संग लीया चहा । पहुंचे विदग्ध देस मा जाय ।।
भामंडल को जाति स्मरल होता
महीघर परवत देख्या बहूदे पूरब भब करते इहां राज ।
जाती समस्या भया रेंग २०० दिज नारी राखी के काज ॥
तप कर विप्र भया वह देव चित्रोत्समा मै जुगल भए । २००१॥ जनमत समं मुर्के सुर हत्या | चंद्रगति तां मंदिर से धरा ।। महाकुबुधि बिचारी बुरी बहन हरन की इच्छा वर्गे ।।२००२ ।। अपने कुल की निन्दा करी । बाई मुरा मृतक सभ परी ॥ बहूर गये रचनूपुर देस | चन्द्राइरा देश्या भैस ॥। २००३।। सुत