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मुनि सभावंच एवं उनका पद्मपुराण
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वंद मिया खुलाय उपचार | सौत कामल र घरे समार ।। कामिन फेरै देही पर हाथ । बीजणा करै मरती तिण साथ ।।२०।४।। व सचेत बोलियां कुमार । पूछ राय पुत्र की सार ॥ पिछला कह्या सकल सनमंध 1 विनया कारण हुआ अंध ॥२००५।। सीता बहिन हवाको भ्राता । उपजे कुख विदेही मात ।। जनम समै हरि ल्याया देव' । तुम घर छोड दिवा इह भेव ।।२००६।। सकल सभा सांभलि सन मंत्र । सब संसार जाणियो घंघ ।। पोता कूदीनू सब राज | चले सुत पिता दीक्षा काज ॥२००७।। महेन्द्र गिर इक उत्तम थान । सरवभूत हित मुनि ढिग यांन ।। करि जोड कीनुनमस्कार । प्रभु हमें दिक्षा छौ इसबार ॥२००८।। बाशबाने गुनी जमा ! नत्य पपर सिरण ठाय ।। कर पारती महोच्छा घणे । भाट जज कार जनक भणं ॥२००६।। प्रभामंडल जनक सुप्त सूर । ग्यांनवंत दासा भर पूर ।।
धन्य धन्य घरी धरम की देह । घरमध्यान सुस्याया नेह् ।।२०१०॥ सीता द्वारा पिता के नाम पर चिलन
सीता सुध्यां पिता का नाम । सोचे घणां राखि वित्त ठाम ।। जनक पुत्र इहै है नुप कौण । मो संगि जनम हुवा था जोण ॥२०११।। कोई हर ले गया जनम की वार । ताकी कबन्न न पाई पार ।। सीता के भरि पाये नैण । रामचंद्र तव पूछ वयण ।।२०१२।। किम हम भरे कहा तुस दुःख । तुम कू है मुह माम्या सुख ।। सांची बात कहो समझाय । क्यू दिलगीर भई किरण मार ।।२०१३14 पिछली कही जनक की बात । मो साथै इफ जन्म्या म्रात ॥ बाकू कोइ ले गया उठाइ । बोल भाट जनक सुत राय ।।२०१४
तुम चालो तो देख्या जाई । दरसन मात को पाऊं गय ।। दशरप का मुनि के पास जामा
बीती रयण भयो पर भात । दयारथ चल्यो मुनिवर की जात ।।२०१५।। च्या पुन सहित परिवार । बहुत लोग भए प्रसवार ।। विद्याधर की सेण्यां घणी । मंदिर माया रूपी बनी ||२०१६।। राजसभा खेचर की जुडो । भने प्रजोध्या छाई खरी ॥ दरसन कियो मुनिवर को जाइ ! नमस्कार कीया बहू भाइ ।। २०१७।।