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मुनि सभासंध एवं उनका पापुराण
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बोबन जल बुदबुदा समान । पलमै हो जाइ तिहां हांनि । जोबन समें धरम कबहू ना करें । अगल भव' कुयो हित धरै ।।१९७५।। जीव लपटियो माया जाल । आय अचित्यो व्या काल । जरा घटाई देही मांस । तो भी इच्छै भोग विलास ।। १६७६१ अगली सुघ सब दई विमा । पुत्र प्र लक्ष्मी लाई नार ।। सुपना की सी है सब रिद्ध । जागति कबहु न दीस सिव ।। १६७।। सकल विभूत पुण्य नै होइ । ताका भेट समझ सब कोइ ।। पुण्य सिवाय' सगां कोई नहिं । कहा राचे ऐसा सुग्ब माहि ।।१६७६।। उग्मज विगणसे होइ विछोह । ताम कहा कीजिये भोग ।। धन्य साथ जिन तजियो गेह । ममता कबहुं न गम्न गह ।।१९८०॥ मेरा है यह पुत्र सपूत 1 तिसकों साँपों राज विभ्रत ।। आतम का हित करू मन लाग्य । घरमाध बस मन बच काय ॥१८५११
ग्रंसी चित चिता नप करें । पंच महाव्रत कब मन पर। सर्व विभूति मुनि से धर्मापदेश का श्रवण
सर्वसूति मुनिबर 4 प्राइ । च्यार म्यान झलक तसु वाय ॥१६८२॥ बहुत शिष्य मुनिवर ता संग । तीन ग्यांन सों सोम अंग ।। केइ तम तल केई जिन भूमि । केई सिला फेई परवत गिन ।। १६८।। केई सरिता के तट तीर । धरयो व्यांन मन मेरु सुधीर ॥ रितु चौमासो काली घटा । सकल मयगा मेघसों पटा ॥११८।। चमक दामिण गरज घरमा। मसल धारा बरमै घणा ।। मुनिवर बैठा श्रपणे ध्यान । लगबूद प्रति तीर समान । १९८।। सह परीस्या बीस भन दोय । दया भाव सब ऊपर होइ ।। वाजा बजे बहुत परभात । उ लोग जिन सूमर प्रान । १६८६। कार सनान जिन पूजा करी । भूपति मुनि बंदन चित घरी ।। राय संघात चाल्या बहु लोग। देख्या साध ग्रात्मा जोग ॥१६८७|| दीनी तीन प्रदक्षिणा राय । केवलि वाक्य सुण्या मन लाय ।। सकल संदेह चित्त का गया । राजा फिर मंदिर प्राइया ||१६८।। रांशी सों वह मंदिर मांझ । राजा सेन्च कर दिन सांझ ॥ भोग मुगति मैं बीतं काज । दसरथ कर अजोध्या राज ॥१८॥ इति श्री पद्मपुराणे विश्वमूति मुनिवर समीप धर्म श्रवण विधामक