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पापुरत
विद्याधर प्राय सब मिले । समाधान पूछे बहु बने ।। चरचा कर धरम की सर्व । सातों तत्व और षट द्रव्य ।।२०१८11 नब पदार्थ नै काया पंच । जिनवाणी मुख कोन संच ।। ग्रादि अंत की चरा करे 1 जिनेश्वर बावय हिये में धरै ॥२०१६।। दशरथ नृप पूर्छ कर जोडि । प्रमुजी इनकी कहो वहोट ।।
किशा कारण यह लेत हैं जोग । छोरे केम राज सुख भोग ।।२०२०।। मुनि द्वारा बसलाना
बोले मुनिवर ग्पांन विचार । विदग्ध देस महीधर को पार ।। कुंडलमडल तिहां भूपती । पिंगन्न विप्र की तिहां पियनी ॥२०२११ नारि लई विघ्न की छीन । विप्र दलिद्री का प्रति दीन । चक्रध्वज प्रभावती का सूता । गजा ले त्रिय भोगता ॥२०२२।। वित्र महा दुख घणा मन करया । जती पास संयम पादश्या ।। तप करि लमा महेन्द्र विमाए । पिछला भव समझ धरी ग्यांन ।२००३।। मारण कुडल मंडल गह्मा । बांध्या ताहि बहुत दुख दिया ।। बहरि कुडल दीया छोडि । मुनि मुख सुनी करम की खोडि ।।२०२४। तिहां अणुव्रत लिया मन लाइ । चित्रोत्सवा तप कीया जाइ ।। दो उपज्या गरम विदेह 1 जनक मूप के जुगलया एह ।।२०२५।। वर समझि इन दासक हरुमा । गया गया गिर कंदर फिर्या ॥ विजयाग्ध रथनूपुर जाय । चंद्रगति फिर घेऱ्या प्राय ।।२०२६।। पुष्पवती नै पाल्मा याहि । नाम घऱ्या प्रभामंडल ताहि । नारद लिखी सीता का रूप । प्रभामंडल तब मोहा मप ॥२०२७।। उन बांछी हरगो कू मीया । जानी सुमरण ग्यान उपजीया । इग्ग बारण उपज्या वैराग । राज रिध दी सद ही त्याग ॥२०२८॥
व्योरा सुरिण सब चक्रित भए । सब संदेह इनू के गये ।। प्रभामंडल द्वारा प्रश्न करना
प्रभामंडल नब पूर्छ प्रश्न ! चंद्रगति पुष्पवती प्रसंग ।।२०२६।। कवरण सनमंघ इणु संग मिल्या । पुन समान इनु के पक्ष्या ।। भरतक्षेत्र मोद श्म गाम । विमुच चित्र निवस तिरण ठाम ।।२०३०॥ अनकोसा ताकी है स्त्री । प्रतिमूत पुत्र सरिसा पुत्तरी ।। ग्याना विप्र उर जामात । सरसा कुले भाज्या प्रात ।।२०३१।।