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पपुराण
रामचंद्र लक्ष्मण की जीत । जनकराय सों बांधी प्रीत ।। जज सबद कर सब लोग । भाजे लाके सव सोग वियोग ॥१८२२।। इति श्री पद्मपुराणे म्लेच्छ पराजय विधानके
२४ वां विधानक
चौपई
जनक की इच्छा
जनक बिचारी तब मन मांहि । असी वसत कछु मेरै नाहि ॥ रामचन्द्र के अग्ने धान्ने गुनों को पार नह: १21
सीता देण की इच्छा करी । नारद कान बात यह पष्ठी ।। नारब द्वारा कन्या को देखना
नारद जुध इनौं का देखि । अपणं मन हरपियो विशेष ।।१८२४ । कन्या देखणा कू धरि भाव । माया प्रतहपुर की ठाव ।।
जनक मंदिर नारद मुनि गया ! दर्पण लीयो भी यहां सिया ।।१८२५३। नारव को देख सीता का उरना
कन्या देख अपणां वरण । सब सरीर बीस लगि चरण ।। सीस जटा जुट देह मनीन । हाथ कमंडल पीली लीन ।।१२।। कटि पडदनी प्रति तापस मुनी । शीलवंत नारद रिष गुती ।। देखी वाया सीता डरी। भाजी कन्यां वाही घडी ।।१८२७ मा मा करि दोही घर माहि । नारद पाई दो ताहि ।। पोलीदार जाबा नहि देहि । नारद सेती वाड करेहि ।।१२८॥ भया कोलाहल नरपति सुण्यां । वहा सार अंतहपुर गां ।। आगन्यां भई दौडे सब सूर । प्रावध वहुल लिये भरपूर॥१८२६।। नारद निज विद्या संभालि । गिरि कइलास गया तिहं काल ।। ऊंचे नीचे लेइ उसास । नहीं श्री जीवण की पास ।.१५३०॥
नारद का विचार
नारद मुनी चल्या बड़ी वार । मनमें उपज्या तव अहंकार ।। मौसु नृप जनक असी करी । मोहि देखि सीता भाजि दुरी ॥१८३१।। मिथलापुर जनक की मद्दी । करू उपद्रव तो नारद सही ॥ लील्या पट्ट सीता का रूप । रथनूपुर चंद्रगति भूप ।।१८३२।।