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रामचंद्र न सके संभार । वे ले जाहिं सीता नारि || यह चिता मेरे मन बसे । रामनें न द्यू तो जग हंस ।।१६०६ ।।
रणी द्वारा चिन्ता प्रकट करना
इतनी सुरात राखी पिछताय जनमत भया पुत्र का हसा हाय हाय करि व घरी जब राजा समझावं त्रयग्ण मारू' विद्याधर सब ठौर ।
सीता स्वयंवर
कारण पाप उदम मेरे श्राय । कन्या जाइ तो पूरा मरण ।।१६०३।। सी कठिन श्ररिश के बरी || अपां मन राखो तुम श्रयन ।।१६०८ ।। वे नहि आवैगांव न गौर ॥
पचा
राजा ने तवं स्वयंवर रच्या । भली भली सीज कर मच्या ॥१६ देस देस कु पठाएन । सबल पृथ्वीपति श्रई पहुंस ।। रामचंद्र लक्ष्मण भरत । सघन सब का ले मन हस्त ॥ १३१ ॥
श्राए सव मंडप राजान । कन्यां कर जयमाला आन ॥ सुभस्वर ता है धीयता भंग | रतन जडित कर डी सुरंग ॥। १६११००
खेचर भूचर भूपति घने । पहरि ग्राभूषण अव
एक ते एक नृप भाये बली । कहां लगि वरण नामावली १३१२
नापुर का हरिवाहन राय । ता डिंग घनप्रभु बैंट आय || केतुमु दुरमुख और प्रभामुख | श्री जैवांगारस का गुरुमुख ।। १६१३।। मंदिर विसाल श्रीधर शुभमनी || मंत्रम के पृरु नृप और ।।१६१४।।
जराजा भनि सुप्रभा पती वीश्वर पंचत्र भद्र सिंह को
गोविंद
का राव
राजा भोज भोजलिंग टाइ || वाय नाम सगल का कहै । कन्या देखि फिर मारग महे ।। १६१५ ।।
राजकुंवर देते वह भांति । रामचंद्र को देवी क
बजाव धनुष तिहां घरथा | मैत्रा करें देव न पड़ा ।। १२१६ ।।
जे कोई धनुष चढाव ग्राम मो सीता नं परशय ॥
जैसी बिजली तैसा बच्छ । ज्वाला व्रत घनुष व अ
।।१६१७।।
फिर निहां पाग महान कं सूपनि जार्थ भारि ॥
कई धनुष पास नहीं जाई । सूर सुभट करें बहु उपाय ।।१६१६ ।।
जो कोई पहुंच किया ही भांति । भस्म होइ प्राणजात ॥ भूपति कहूँ जनक कहा किया। इतने लोगों के प्राण जुलिया ॥१६१२॥